भारतवर्ष के अनेक भागों में मलेरिया का प्रकोप विशेष रुप से पाया जाता है यह बरसा ऋतु के पश्चात मच्छरों के काटने से फैलता है। तुलसी के पौधों से मच्छरों को दूर भगाने का गुण और उसकी पत्तियों का सेवन करने मलेरिया का दूषित तत्व दूर हो जाता है। इसलिए हमारे यहॉं ज्वर आने पर तुलसी और कालीमिर्च का काढ़ा बनाकर पी लेना सबसे सुलभ और सरल उपचार माना जाता है।

1 जुकाम के कारण आने वाले ज्वर में तुलसी के पत्तों का रस अदरक के रस के साथ शहद मिलाकर सेवन करना चाहिए।

2 तुलसी के हरे पत्ते एक छटांक और कालीमिर्च,आधा छटांक दोनों को एक साथ बारीक पीसकर झरबेरी के बराबर गोलियॉं बनाकर छाया में सुखा लें। इसमें से दो गोलियॉं तीन-तीन घंटे के अंदर से जल के साथ सेवन करने से मलेरिया अच्छा हो जाता है।

3 पुदीना और तुलसी के पत्तों का रस एक-एक तोला लेकर उसमें                       

3 माशा खॉंड़ मिलाकर सेवन करें, इससे मंद-ज्वर में बहुत लाभ होता है।

4 तुलसी के पत्ते 11कालीमिर्च 9अजबाइन 2माशा, सैंठ3 माशा, सबको पीसकर एक छटांक पानी में घोल लें। तब एक कोरा मिट्टी का प्याला, सिकोरा या कुल्हड़ आग में खूब तपाकर उसमें उत्त मिश्रण को डाल दें और उसकी भाप रोगी के शरीर को लगाऍ़। कुछ देर बाद जब वह गुनगुना, थोडा़ गरम रह जाए तो जरा-सा सेंधा नमक मिलाकर पी लिया जाए। इससे सब तरह के बुखार जल्दी ही दूर हो जाते हैं।

5शीत ज्वर में तुलसी के पत्ते, पुदीना, अदरक तीनों आधा-आधा तोला लेकर काढ़ा बनाकर पिऍं।

6 तुलसी के पत्ते और काले स‍हजन के पत्ते मिलाकर पीस लें। उस चूर्ण का गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से विषम ज्वर दूर होता है।

7 मंद ज्वर में तुलसी पत्र आधा तोला, काली काली दाख दा दाना, कालीमिर्च एक माशा, पुदीना एक ताशा, इन सबको ठंडाई की तरह पीस-छानकर मिश्री मिलाकर पीने से लाभ होता है।

8 विषम ज्वर और पुराने ज्वर में तुलसी के पत्तों का रस एक तोला पीते रहने से लाभ होता हैं।

9 तुलसी पत्र और सूरजमुखी की पत्ती पीस-छानकर पीने से सब तरह के ज्वरों में लाभ होता है।

10 कफ के ज्वर में तुलसी पत्र, नागमोंथा और सैंठ बराबर लेकर काढा़ बनाकर सेवन करें।

11 जो ज्वर सदैव बना रहता हो उसमें दो छोटी पीपल पीसकर तथा तुलसी का रस और शहद मिलाकर गुनगुना करके चाटें। 

12 तुलसी पत्र और नीम की सींक का रस बराबर लेकर थोडी़ कालीमिर्च के साथ गुनगुना करके पीने से क्वार के महीने का फसली बुखार दूर होता है।

13 तुलसी पत्र एक तोला, कालीमिर्च एक तोला, करेले के पत्ते एक तोला, कुटकी 4 तोला, सबको खरल में खूब घोंटकर मटर के बराबर गोलियॉं बनाकर छाया में सुखा लें। ज्वर आने से प‍हले और सायंकाल के समय दो-दो गोली ठंडे पानी के साथ सेवन करने से जाड़ा देकर आने वाला बुखार दूर होता है। मलेरिया के मौयम में यदि स्वस्थ मनुष्य भी एक गोली प्रतिदिन सुबह लेता रहे तो ज्वर का भय नहीं रहता। ये गोलियॉं दो महीने से अधिक रखने पर गुणहीन हो जाती हैं।

14 सामान्य हरारत तथा जुकाम में तुलसी की थोडी़-सी पत्तियों का चाय की तरह काढा़ बनाकर उसमें दूध और मिश्री मिलाकर पीने से लाभ होता है। कितने ही जानकार व्यत्तियों ने आजकल बाजार में प्रचलित चाय की अपेक्षा तुलसी की चाय को हितकर बताया है।

खांसी और जुकाम

1 साधारण खांसी में तुलसी के पत्ते और अडूसा के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करने से शीघ्र लाभ होता है।

2 तुलसी के बीज, गिलोय, सौंठ, कटेरी की जड़ समान भाग पीसकर छान लें, इसमें से आधा माशा चूर्ण शहद के साथ खाने से खांसी में लाभ होता है।

3 कुकर खांसी में तुलसी मंजरी और अदरक को बराबर लेकर पीसकर शहद में मिलाकर चाटें।

4 तुलसी की मंजरी, बच, पीपल आधा-आधा तोला और मिश्री दो तोला लेकर एक सेर पानी में औटाऍं, जब आधा रह जाए तो छानकर रख लें। इसको एक-एक छटांक दिन में कई बार सेवन करने से कुकर खांसी में लाभ होता है।

5 छोटे बच्चों की खांसी में तुलसी की पत्ती 4 रत्ती और ककड़ासिंघी तथा अतीस दो-दो रत्ती शहद में मिलाकर मॉं के दूध के साथ देने से फायदा होता है।

6 तुलसी का रस और मुलहबठी का सत मिलाकर चाटने से खांसी दूर होती है।

7 तुलसी और कसौंदी की पत्ती का रस मिलाकर सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।

8 चार-पॉंच लौंग भूनकर तुलसी पत्र के साथ लेने से सब तरह की खांसी में लाभ पहुँचता है।

9 सूखी खांसी में अगर गला बैठ गया हो तो तुलसी पत्र, खसखस (पोस्त का दाना) तथा मुलहठी पीसकर समान भाग लाल बूरा या खांड मिलाकर गुनगुने पानी के साथ सेवन करें।

10 तुलसी पत्र आधा तोला, गेहूँ का चोकर एक तोला, मुलहठी आधा तोला पावभर पानी में पकाऍं। आधा रह जाने पर छानकर थोडा़ देशी बूरा या खांड मिलाकर पीने से शीघ्र ही खांसी दूर होती है।  

11 तुलसी पत्र, हल‍दी और कालीमिर्च का उपर्युत्त विधि से बनाया काढ़ा भी जुकाम और हरारत में लाभ करता है।

ऑंख, नाक और कानों के रोग

मनुष्य शरीर में ये तीनों इंद्रियॉं बहुत महत्वपूण और साथ ही कोमल हुआ करती हैं।

1 तुलसी के बीज 2 माशा, रसौत 2 माशा, आमा हलदी 2 माशा, अफीम चार रत्ती, इन सबको घीग्वार के गूदे में मिलाकर पीस लें। इसका आखों के चारों ओर लेप करने से दरद और सुर्खी में लाभ होता है।

2 केवल तुलसी का रस निकालकर ऑंखों में ऑंजने से भी नेत्रों की पीड़ा तथा अन्य रोग दूर होते हैं। यदि तुलसी के रस में थोड़ा असली शहद मिलाकर छानकर शीशी में रख लें तो वह ऑंखों में टपकाए जाने वाले उत्तम आईड्राप औषधि का काम दे सकती है।

3 ऑंखों में सूजन और खुजली की शिकायत होने पर तुलसी पत्रों का काढ़ा बनाकर उसमें थोडी-सी फिटकरी पीसकर मिला दें। जब काढ़ा गुनगुन रहे तभी साफ रुई को उसमें भिगोकर बार-बार पलकों को सेकें। पांच-पांच मिनट में दो बार सेकने से सूजन कम होकर ऑंखें खुल जाती हैं।

4 अगर कान में दरद हो या श्रवण-शत्ति में कुछ गड़बडी जान पड़ती हो तो तुलसी का रस जरा-सा गुनगुना करके दो-चार बुँद टपकाने से आराम होता है। कान बहता हो या पीव पड़ जाने से दुर्गंध आती हो तो प्रतिदिन रस डालते से लाभ होता हैं।

5 अगर नाक के भीतर दरद होता हो, किसी तरह का जख्म अथवा फुंसी हो गई हो तो तुलसी के पत्तों को खूब बारीक पीसकर सूँघनी की तरह सूँघने से आराम होता है।

6 नाक में पीनस रोग होकर कीडे़ पड़ जाने पर और दुर्गंध आने पर वन तुलसी के पत्तों का रस और कपूर मिलाकर नस्य लेना चाहिए।

पुरुषों के वीर्य और मूत्र संबंधी रोग

तुलसी के बीज अधिक लसदार और लेपक होते हैं और मूत्र संस्थान के विकारों में दिए जाते हैं। तुलसी की जड़ को भी बहुत अधिक स्तंभन गुण युक्त बतलाया गया है। ये बीज बहुत जल्द लुआव छोड़ते हैं और थोडी़ ही देर में लसदार झिल्ली के रूप में बदल जाते हैं, इसलिए इनको गुड़ जैसी किसी चीज में मिलाकर खाते हैं या पानी में घोलकर पीते हैं। वैसे तुलसी के पत्ते भी वीर्य दोषों को मिटाने में बहुत उपयोगी हैं।

1 तुलसी की जड़ को बारीक पीसकर सुपाडी़ की जगह पान में रखकर खायाजाए तो वीर्य पुष्ट होता है और स्तंभन शक्ति बढ़ती है।

2 तुलसी के बीज या जड़ का चूर्ण पुराने गुड़ में मिलाकर 3 माशा प्रतिदिन दूध के साथ सेवन करने से पुरुषत्व की वृध्दि होती है।

3 तुलसी के बीज 5 तोला, मूसलह 4 तोला, मिश्री 6 तोला लेकर पीसकर मिला लें। इस चूर्ण को प्रतिदिन 6 माशा गाय के दूध के साथ सेवन करने से वीर्य संबंधी निर्बलता में आशाजनक सुधार होता है।

4 सुजाक की बीमारी में तुलसी के बीज, छोटी इलाइची के दाने और कलमी शोरा समान भाग मिलाकर पीस लें। इस चूर्ण को दो-तीन रत्ती खाकर दूध से दुगुना पानी मिली हुई लस्सी जितनी पी जा सके उतनी पीने से बहुत लाभ होता है। लस्सी में चीनी आदि कोई अन्य चीज पहीं मिलानी चाहिए।

5 उपदंश राग में तुलसी के बीज पानी में महीन पीसकर लुगदी बना लें। इससे दूना नीम का तेल लेकर दोनों को आग पर पकाओ। जब लुगदी जलकर काली पड़ जाए तब उसे छानकर तेल को ठंडा कर लें और उपदंश के घावों पर लगाऍं, यह तेल अन्य प्रकार के घावों पर भी बहुत लाभ पहुँचाता है।

6 मूत्र दाह की शिकायत में पावभर दूध और डेढ़ पाव पानी मिलाऍं और उसमें दो-तीन तुलसी पत्र का रस डालकर पी जाऍं। 7 वीर्य की निर्बलता के लिए तुलसी के बीज नौ रत्ती और खॉंड़ का पुराना शीरा 1रत्ती मिलाकर प्रात:- सायं सेवन करें।

8 रात को तुलसी के 6 माशा बीज पावभर पानी में भिगो दें और सुबह उनको खूब मिलाकर ठंडाई की तरह पी जाऍं। इसके लगातार सेवन से प्रमेह, धातु क्षीणता, मूत्र-कृच्छ में लाभ होता है।

स्त्रियों के विशेष रोग

तुलसी के बीजों में जो लस और लेपक गुण होता है, वह पुरुषों की जननेंद्रिय संबंधी रोगों में भी विशेष लाभदायक सिध्द होता है। कुछ लोगों का तो ऐसा विश्वास है कि तुलसी स्त्री वाचक पौधा है और कथाओं में उसे विष्णु की प्रिया भी कहा गया है, इससे वह स्त्री रोगों को दूर करने और उनके स्वास्थ्य संवर्ध्दन में विशेष सहायक होते हैं।

1 स्त्रियों के मासिक धर्म रुकने पर तुलसी के बीजों का प्रयोग लाभदायक होता है। तुलसी पंचांग (पत्ते,मंजरी,बीज,लकड़ी और जड़) सौंठ, नीबूकी छाल का गूदा, अजवायन, तालीश पत्र, इन सबका जौकुट, इसमें से एक तोला लेकर पावभर पानी में काढ़ा बनाऍं। जब चौथाई पानी रह जाए तो छानकर पी लें। कुछ समय तक यह प्रयोग करने से रुका हुआ मासिक धर्म खुल जाता है।

बच्चों के रोग

छोटे बच्चों के रोगों में तुलसी बहुत सौम्य तथा निरापद औषधि के रूप में व्यवहार की जाती है, इससे बच्चों के ज्वर, खांसी, दूध पलटना, श्वांस आदि रोगों में शीघ्र आराम होता है।

1 बच्चों को शीतला निकलने पर तुलसी की मंजरी,

 अजवाइन और अदरक समभाग लेकर दिन में कई बार सेवन कराने से लाभ होता है।

2 तुलसी पत्र एक तोला, मैथी एक तोला कूट 6 माशा आधा पाव पानी में पकाऍं। जब चौथाई भाग शेष रह जाए तो छानकर, ठंडा करके पिलाऍं, यह शीतला ज्वर में हितकारी है।

3 बच्चों को सरदी और खांसी की शिकायत होने पर तुलसी पत्र का रस अजवाइन और अदरक का रस पौन-पौन तोला लेकर खरल कर लें और ढाई तोला शहद मिलाकर शीशी में भर लें। इसमें से 30 से 60 बूँद तक दिन में तीन बार देने से लाभ होता है।

4 तुलसी पत्र, बबूल की कोंपल, अजवाइन एक-एक तोला मिलाकर रखा लें। इसमें 6 माशा लेकर 1 छटांक जल में पकाऍं। जब चौथाई रह जाए तो छानकर बच्चों को मिलाऍं, इससे सब प्रकार के ज्वरों में लाभ होता है।

5 बच्चों का पेट फूलने पर तुलसी का स्वरस अवस्थानुसार 2 माशा तक पिलाने से आराम होता है।

6 दांत निकलते समय बच्चों को जोर के दस्त लग जाते है, उसमें तुलसी के पत्तों का चूर्ण अनार के शरबत में देना लाभदायक होता है।

उदर रोगों पर

1 तुलसी के ताजे पत्तों का रस एक तोला प्रतिदिन सुबह सेवन करने से अजीर्ण दूर होता है।

2 तुलसी के पंचांग का काढा़ बनाकर पीने से दस्तों में आराम होता है और पाचन शक्ति बढ़ती है।

3 उपर्युक्त काढ़े में एक या दो रत्ती जायफल का चूर्ण मिलाकर पीने से कठिन बीमारी में शीध्र आराम होने लगता है।

4 तुलसी व अदरक का रस एक-एक चम्मच मिलाकर दिन में 3 बार पीने से पेट दरद में लाभ होता है।

5 तुलसी के ग्यारह पत्ते लेकर एक माशा बायबिडंग के साथ पीस डालो, इसको सुबह-शाम ताजा पानी के साथ सेवन करने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।

6 तुलसी और स‍हजने के पत्तों को छटांक भर रस में सेंधा नमक मिलाकर सेवन करने से मंदाग्नि मिटकर दस्त साफ होता है।

7 सूखे तुलसी पत्र, सौंठ और गुड़ मिलाकर बड़ी गोलियॉं बना लें, इनको प्रतिदिन सेवन करने से दस्तों में लाभ होता है।

8 तुलसी के सूखे पत्तों का चूर्ण एक माशा, ईसबगोल तीन माशा मिलाकर द‍ही के साथ सेवन करने से पतले दस्तों में लाभ होता हैं।

फोडा़, घाव और चर्म रोग

तुलसी में शोधक और कीटाणु नाशक गुण विशेष रूप से होते हैं। हर प्रकार के घाव और फोड़ों पर तुलसी का प्रयोग बहुत लाभदायक होता है। तुलसी की लकडी़ को चंदन की तरह घिसकर फोड़ों पर लेप करने से शीघ्र आराम हो जाता है। तुलसी पत्र के काढ़े से धोने पर भी फोडो़ और घावों में लाभ होता है। अगर घाव में कीडे़ पड़ गए हों और वह बदबू करता हो तो उसे काढे़ से धोने के बाद उस पर सूखे पत्तों का चूर्ण छिड़क देना चाहिए।

1 तुलसी के पत्तों को नीबू के रस में पीसकर दाद पर लगाने से आराम होता है।

2 तुलसी का रस दो भाग और तिली का तेल एक भाग मिलाकर मंद आग पर पकाऍं। ठीक पक जाने पर छान लें, इसके प्रयोग से खुजली और चर्म रोगों में भी लाभ होता है।

3 अग्नि से जल जाने पर तुलसी का रस और नारियल का तेल फेंटकर लगाने से जलन मिट जाता है। यदि फफोला पड़  गया हो या घाव हो तो वह शीघ्र ठीक हो जाता है।

4 तुलसी के पत्तों को गंगा में पीसकर निरंतर लगाते रहने से सफेद दाग कुछ समय में ठीक हो जाते हैं।

5 बालतोड़ पर तुलसी पत्र और पीपल की कोमल पत्तियॉं पीसकर लगाने से आराम होता हैं।

6 नाक के भीतर फुंसी हो जाने पर तुलसी पत्र तथा बेर को पीसकर सॅूंघने और लगाने से लाभ होता है।

7 पेट के भीतर फोडा़ या गुल्म में तुलसी पत्र और सोया के शाक का काढा़ बनाकर उसमें थोडा़ सैंधा नमक मिलाकर पीना चाहिए।

8 तुलसी पत्र और फिटकरी को खूब बारीक पीसकर घाव पर छिड़कने से वह शीघ्र ही ठीक हो जाता है।

9 बालों का झड़ना और असमय सफेद हो जाना भी एक चर्म विकार ही है, इसके लिए तुलसी पत्र और सूखे ऑंवले का चूर्ण सिर में अच्छी तरह मिलाकर सामान्य तापमान के पानी में धोना चाहिए।

10 कॉंख के फोडे़ (कखौरी) पर तुलसी पत्र, राई, गुड़, गूगल समान मात्रा में पानी में पीसकर गरम करके बॉंधने से वह फूटकर ठीक हो जाता है।

11 तुलसी के पत्तों को नींबू के रस में मिलाकर लगाते रहने से दाद मिट जाता है।

12 तुलसी और नीम के पत्तों को दही में पीसकर लगाने से भी दाद ठीक हो जाता है।

मस्तिष्क और स्नायु संबंधी रोग

1 स्वस्थ अवस्था में भी तुलसी के आठ-दस पत्ते और चार-पॉंच कालीमिर्च बारीक घोंट-छानकर सुबह लगातार पिया जाए तो मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है। यदि चाहें तो दो-चार बादाम और इसमें थोडा़ शहद मिलाकर ठंडाई की तरह बना सकते हैं।

2 प्रात:काल स्नान करने के पश्चात तुलसी के पॅांच पत्ते जल के साथ निगल लेने से मस्तिष्क की निर्बलता दूर होकर स्मरण शक्ति तथा मेधा की वृध्दि होती है।

3 मृगी रोग में तुलसी के ताजे पत्ते नीम के साथ पीसकर उबटन की तरह लगाने से बहुत लाभ पहुँचता है, यह प्रयोग नियमित रूप से लगातार ब‍हुत समय तक करना चाहिए।

4 तुलसी के पत्ते और ब्राह्मी पीसकर छानकर एक गिलास नित्य सेवन करने से मस्तिष्क की दुर्बलता से उत्पन्न उन्माद ठीक हो जाता है।

5 तुलसी के रस में थोडा़ नमक मिलाकर नाक में दो-चार बॅूंद टपकाने से मूर्च्छा और बेहोशी में लाभ होता है।

6 तुलसी का श्रध्दापूर्वक नियमित सेवन सभी ज्ञानेंद्रियों की क्रिसा को शुध्द करके उनकी शक्ति को बढ़ाता है।

दांतों की पीडा़

1 दांतों में दरद होने पर तुलसी के पत्ते और कालीमिर्च पीसकर गोली बनाकर दरद के स्थान पर रखने से आराम होता है।

2 तुलसी के पंचांग को कूटकर तोला भर आधा सेर पानी में पकाऍं, आधा पानी जल जाने पर उतार लें, इससे कुल्ला करने पर दांतों का दरद मिटता है।

सिर दरद

1 सिर पीडा़ में तुलसी के सूखे पत्तों का चूर्ण अथवा तुलसी के बीजों का चूर्ण कपडे़ में छानकर सूँघनी की तरह सूँघने से आराम होता है।

2 तुलसी पत्र 35, सफेद मिर्च1, तुरिया 10 नग, इनको जल में पीस रस निकालकर नित्य लेने से पुराना सिर दरद दूर हो जाता है।

3 तुलसी पत्र और दो-तीन कालीमिर्च पीसकर रस निकालकर नस्य लेने से आधा शीशी का दरद दूर हो जाता है।

4 वन तुलसी का फूल और कालीमिर्च को जलते कोयले पर डालकर उसका धुँआ सूँघने से सिर का कठिन दरद ठीक हो जाता है।

5 श्यामा तुलसी की जड़ को चंदन की तरह घिसकर लेप करने से दरद मिटता है।

गठिया और जोडो़ं का दरद

1 तुलसी में वात विकार को मिटाने का गुण पाया जाता है। इसलिए यदि बात की प्रबलता से नाडियों में दरद जान पडे़ तो उसमें तुलसी के काढ़े का प्रयोग हितकारी होता है। यदि जोडो़ं में दरद होता हो तो तुलसी के पत्रों का रस पीते रहने से लाभ होता है। मोच और चोट पर तुलसी के स्वरस की मालिश करने से आराम होता है।

2 तुलसी की जड़, पत्ते, डंठल, मंजरी और बीज, इन पॉंचों को समान भाग लेकर कूट-छानकर 6 माशा की मात्रा में उतने ही पुराने गुड़ के साथ मिला लें। इसको प्रात:-सायं दोनों समय बकरी के दूध के साथ सेवन करने से गठिया का रोग दूर हो जाता है।

3 वन तुलसी के पंचांग को पानी में उबालकर उसका भफारा लेने से लकवा और गठिया में लाभ होता है।

विविध रोग

किसी प्रकार के विष जैस अफीम, कुचला, धतूरा आदि खा जाने पर तुलसी के पत्रों को पीसकर गाय के घी में मिलाकर पीने से आराम होता है। घी की मात्रा अवस्था के अनुसार पावभर से आधा सेर तक हो सकती है। एक बार में आराम न हो तो बार-बार तुलसी घृत पिलाना चाहिए।

2 तृषा रोग में तुलसी के रस में नींबू तथा मिश्री मिलाकर और थोडा़ पानी डालकर शरबत की तरह सेवन करने से लाभ होता है।

3 दिन में दो बार, विशेषकर भोजन के घंटे, आधे घंटे बाद तुलसी के चार-पॉंच पत्ते चबा लेने से मुख में दुर्गंध आना बंद हो जाता है।

4 तुलसी पत्र, हुरहुर के पत्ते, अमरबेल, ऊँट की मेंगनी, इन सबको गौमूत्र में पीसकर और पकाकर बढे़ अंडकोष के ऊपर गाढा़ लेप करने से लाभ होता है।

5 चारपाई में खटमल हो जाने पर वन तुलसी की डाली रख देने से ये भाग जातेद हैं। इन डालों को घर में रखने से मच्छर, छछूंदर व सांप नहीं आते, ये सब जीव वन तुलसी की गंध को सहन नहीं कर सकते।

6 छाती, पेट तथा पिंडलियों में जलन का अनुभव होने पर तुलसी की पत्ती और देवदारू की लकडी़ घिसकर चंदन की तरह लेप कर देना लाभदायक होता है।

7 गले के दरद में तुलसी के पत्तों का रस शहद में मिलाकर चाटना चाहिए।

8 पेचिश, मरोड़ और ऑंव आने की शिकायत होने पर तुलसी पत्र सूखा दो माशा, काला नमक एक माशा, आधा पाव दही में मिलाकर सेवन करें।

9 बवासीर के लिए तुलसी की जड़ तथा नीम की निबोरियों की मिंगी समान भाग लेकर पीसकर चूर्ण बना लें, इसमें 3 माशा प्रतिदिन छाछ के साथ सेवन करने से लाभ होता है।

  

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