गिरजा कछु मन भेद बड़ायो….
जैसा कि चौपाई में आपने सुना कि माता पार्वती के आग्रह करने पर शनी देव ने गणेश जी को देखा तो शनीदेव की दृष्टि जब भगवान श्री गणेश जी पर पड़ी तो उनका सिर धढ से अलग हो गया। अब ऐसी ही एक कहावत और है,
कि भगवान शिव पर भी शनी दृष्टि पढ़नी थी तो शनी देव ने भगवान शिव से बोले कि कल दिन के समय में आपके पास आउगा कल आपको भी मेरी टेडी दृष्टि का सामना करना पड़ेगा तो शिव जी यह सुनकर भयभीत हुए क्योकि उनकी दृष्टि से संसार में कोई नही बच सकता। तो काफी चिंतन करने के बाद उन्होने दूसरे दिन शनी देव के आने के पहले हाथी का रूप रखा और दिन भर आराम से घास खाते और धूमते रहे जब साम हुई तो शिवजी फिर अपने रूप में वापस आये और शनी देव से पूछा कि देखा तुम्हारी दृष्टि का प्रकोप मुझ पर नही हुआ। तो शनी देव मुस्कुराए और बाले कि यही मेरी दृष्टि का ही प्रकोप था कि आपको हाथी बनकर घास खानी पड़ी। और भी ऐसी कई कहावते हमारे धर्म पुराण में मिलती है तो जब उनकी दृष्टि का कोप भगवान भी नही सह सकते तो आम मनुष्य की बात क्या करे।
अब में यहां आपको यहीं एक गलती जो लगभग सभी करते है वो बता रही हूं अब से जब भी शनी देव के मंदिर जाये तो वहां आप शनी देव की पूरी परिक्रमा ना करे क्योकि पूरी परिक्रमा करने पर परिक्रमा में एक समय आप शनि देव के सामने से गुजरेंगे बस वही गलती हो जाती है कि उनकी दृष्टि के सामने नही आना है।
शनिदेव के दर्शन थोड़ा साइड खड़े होकर करे व परिक्रमा आधी घूमकर वापस अपनी जगह आये जैसे भगवान शिव की करते है
और शनी दोष शांत करने के लिए सरसों के तेल का दीपक, काला कपड़ा, काली साबुत उड़द, काली तिल, लोहे का टुकड़ा और सरसों के तेल अवश्य चड़ाये मंत्र का जाप करते रहे उं प्रा प्री प्रों सं शनिश्वाराय नम; या नीलांचन समाभासम…. शनी दोष शांत हो भाग्य चमकता है