arjun ki chhal kaise lete hain – Anju Jadon News & Blogs https://anjujadon.com News & knowledge in Hindi Tue, 10 May 2022 01:19:01 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.5 https://anjujadon.com/wp-content/uploads/2023/03/cropped-anjujadon_new-32x32.jpg arjun ki chhal kaise lete hain – Anju Jadon News & Blogs https://anjujadon.com 32 32 Arjun ki Chhal ke Fayde हृदय रोग के रोगी के लिए अर्जुन वृक्ष की छाल https://anjujadon.com/arjun-ki-chhal-ke-fayde-arjun-ki-chhal-kaise-piye/ https://anjujadon.com/arjun-ki-chhal-ke-fayde-arjun-ki-chhal-kaise-piye/#respond Sun, 02 May 2021 20:33:30 +0000 https://anjujadon.com/?p=182 Arjun ki chaal for heart blockage -अर्जुन वृक्ष भारत में होने वाला एक औषधीय वृक्ष है। इसे घवल, ककुभ तथा नदीसर्ज (नदी नालों के किनारे होने के कारण) भी कहते हैं । कहुआ तथा सादड़ी नाम से बोलचाल की भाषा में प्रख्यात यह वृक्ष एक बड़ा सदाहरित पेड़ है । लगभग 60 से 80 फीट […]

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Arjun ki chaal for heart blockage -अर्जुन वृक्ष भारत में होने वाला एक औषधीय वृक्ष है। इसे घवल, ककुभ तथा नदीसर्ज (नदी नालों के किनारे होने के कारण) भी कहते हैं । कहुआ तथा सादड़ी नाम से बोलचाल की भाषा में प्रख्यात यह वृक्ष एक बड़ा सदाहरित पेड़ है । लगभग 60 से 80 फीट ऊँचा होता है तथा हिमालय की तराई, शुष्क पहाड़ी क्षेत्रों में नालों के किनारे तथा बिहार, मध्य प्रदेश में काफी पाया जाता है ।इसकी छाल पेड़ से उतार लेने पर फिर उग आती है । छाल का ही प्रयोग होता है अतः उगने के लिए कम से कम दो वर्षा ऋतुएँ चाहिए । एक वृक्ष में छाल तीन साल के चक्र में मिलती हैं । छाल बाहर से सफेद, अन्दर से चिकनी, मोटी तथा हल्के गुलाबी रंग की होती है । लगभग 4 मिलीमीटर मोटी यह छाल वर्ष में एक बार स्वयंमेव निकलकर नीचे गिर पड़ती है । स्वाद कसैला, तीखा होता है तथा गोदने पर वृक्ष से एक प्रकार का दूध निकलता है ।

पत्ते अमरुद के पत्तों जैसे 7 से 20 सेण्टीमीटर लंबे आयताकार होते हैं या कहीं-कहीं नुकीले होते हैं । किनारे सरल तथा कहीं-कहीं सूक्ष्म दाँतों वाले होते हैं । वे वसंत में नए आते हैं तथा छोटी-छोटी टहनियों पर लगे होते हैं । ऊपरी भाग चिकना व निचला रुक्ष तथा शिरायुक्त होता है । फल वसंत में ही आते हैं, सफेद या पीले मंजरियों में लगे होते हैं । इनमें हल्की सी सुगंध भी होती है । फल लंबे अण्डाकार 5 या 7 धारियों वाले जेठ से श्रावण मास के बीच लगते हैं व शीतकाल में पकते हैं । 2 से 5 सेण्टी मीटर लंबे ये फल कच्ची अवस्था में हरे-पीले तथा पकने पर भूरे-लाल रंग के हो जाते हैं । फलों की गंध अरुचिकर व स्वाद कसौला होता है । फल ही अर्जुन का बीज है । अर्जुन वृक्ष का गोंद स्वच्छ सुनहरा, भूरा व पारदर्शक होता है ।

अर्जुन जाति के कम से कम पन्द्रह प्रकार के वृक्ष भारत में पाए जाते हैं । इसी कारण कौन सी औषधि हृदय रक्त संस्थान पर कार्य करती है, यह पहचान करना बहुत जरूरी है ।[1] ‘ड्रग्स ऑफ हिन्दुस्तान’ के विद्वान लेखक डॉ. घोष के अनुसार आधुनिक वैज्ञानिक अर्जुन के रक्तवाही संस्थान पर प्रभाव को बना सकने में असमर्थ इस कारण रहे हैं कि इनमें आकृति में सदृश सजातियों की मिलावट बहुत होती है । छाल एक सी दीखने परभी उनके रासायनिक गुण व भैषजीय प्रभाव सर्वथा भिन्न है ।सही अर्जुन की छाल अन्य पेड़ों की तुलना में कहीं अधिक मोटी तथा नरम होती है । शाखा रहित यह छाल अंदर से रक्त सा रंग लिए होती है । पेड़ पर से छाल चिकनी चादर के रूप में उतर आती है । क्योंकि पेड़ का तना बहुत चौड़ा होता है ।अर्जुन की छाल को सुखाकर सूखे शीतल स्थान में चूर्ण रूप में बंद रखा जाता है ।

होम्योपैथी में अर्जुन एक प्रचलित ख्याति प्राप्त औषधि है । हृदयरोग संबंधी सभी लक्षणों में विशेषकर क्रिया विकार जन्य तथा यांत्रिक गड़बड़ी के कारण उत्पन्न हुए विकारों में इसके तीन एक्स व तीसवीं पोटेन्सी में प्रयोग को होम्योपैथी के विद्वानों ने बड़ा सफल बताया है । अर्जुन संबंधी मतों में प्राचीन व आधुनिक विद्वानों में पर्याप्त मतभेद है । फिर भी धीरे-धीरे शोथ कार्य द्वारा शास्रोक्त प्रतिपादन अब सिद्ध होते चले जा रहे हैं ।

रासायनिक संगठन- अर्जुन की छाल में पाए जानेवाले मुख्य घटक हैं-बीटा साइटोस्टेरॉल, अर्जुनिक अम्ल तथा फ्रीडेलीन । अर्जुनिक अम्ल ग्लूकोज के साथ एक ग्लूकोसाइड बनाता है, जिसे अर्जुनेटिक कहा जाता है । इसके अलावा अर्जुन की छाल में पाए जाने वाले अन्य घटक इस प्रकार हैं-

(1) टैनिन्स-छाल का 20 से 25 प्रतिशत भाग टैनिन्स से ही बनताहै । पायरोगेलाल व केटेकॉल दोनों ही प्रकार के टैनिन होते हैं ।

(2) लवण-कैल्शियम कार्बोनेट लगभग 34 प्रतिशत की मात्रा में इसकी राख में होता है । अन्य क्षारों में सोडियम, मैग्नीशियम व अल्युमीनियम प्रमुख है । इस कैल्शियम सोडियम पक्ष की प्रचुरता के कारण ही यह हृदय की मांस पेशियों में सूक्ष्म स्तर पर कार्य कर पाता है ।

(3) विभिन्न पदार्थ हैं-शकर, रंजक पदार्थ, विभिन्न अज्ञात कार्बनिक अम्ल व उनके ईस्टर्स ।

अभी तक अर्जुन से प्राप्त विभिन्न घटकों के प्रायोगिक जीवों पर जो प्रभाव देखे गए हैं, उससे इसके वर्णित गुणों की पुष्टि ही होती है । विभिन्न प्रयोगों द्वारा पाया गया हे कि अर्जुन से हृदय की पेशियों को बल मिलता है, स्पन्दन ठीक व सबल होता है तथा उसकी प्रति मिनट गति भी कम हो जाती है । स्ट्रोक वाल्यूम तथा कार्डियक आउटपुट बढ़तती है । हृदय सशक्त व उत्तजित होता है । इनमें रक्त स्तंभक व प्रतिरक्त स्तंभक दोनों ही गुण हैं । अधिक रक्तस्राव होने की स्थिति से या कोशिकाओं की रुक्षता के कारण टूटने का खतरा होने परयह स्तंभक की भूमिका निभाता है, लेकिन हृदय की रक्तवाही नलिकाओं (कोरोनरी धमनियों) में थक्का नहीं बनने देता तथा बड़ी धमनी से प्रति मिनट भेजे जाने वाले रक्त के आयतन में वृद्धि करता है । इस प्रभाव के कारण यह शरीर व्यापी तथा वायु कोषों में जमे पानी को मूत्र मार्ग से बाहर निकाल देता है । खनिज लवणों के सूक्ष्म रूप में उपस्थित होने के कारण यह एक तीव्र हृत्पेशी उत्तेजक भी है ।

: हृदय रोग के रोगी के लिए अर्जुनारिष्ट का सेवन बहुत लाभप्रद सिद्ध हुआ है। दोनों वक्त भोजन के बाद 2-2 चम्मच (बड़ा चम्मच) यानी 20-20 मि.ली. मात्रा में अर्जुनारिष्ट आधा कप पानी में डालकर 2-3 माह तक निरंतर पीना चाहिए। इसके साथ ही इसकी छाल का महीन चूर्ण कपड़े से छानकर 3-3 ग्राम (आधा छोटा चम्मच) मात्रा में ताजे पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करना चाहिए।

रक्तपित्त : चरक के अनुसार, इसकी छाल रातभर पानी में भिगोकर रखें, सुबह इसे मसल-छानकर या काढ़ा बनाकर पीने से रक्तपित्त नामक व्याधि दूर हो जाती है।

मूत्राघात : पेशाब की रुकावट होने पर इसकी अंतरछाल को कूट-पीसकर 2 कप पानी में डालकर उबालें। जब आधा कप पानी शेष बचे, तब उतारकर छान लें और रोगी को पिला दें। इससे पेशाब की रुकावट दूर हो जाती है। लाभ होने तक दिन में एक बार पिलाएं।

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