ganesh ji ko tulsi kab chadhai jaati hai – Anju Jadon News & Blogs https://anjujadon.com News & knowledge in Hindi Tue, 10 May 2022 01:31:40 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.5 https://anjujadon.com/wp-content/uploads/2023/03/cropped-anjujadon_new-32x32.jpg ganesh ji ko tulsi kab chadhai jaati hai – Anju Jadon News & Blogs https://anjujadon.com 32 32 Ganesh ji ko Tulsi kab Chadhai Jaati hai ध्यान रखें गणेशजी को कभी तुलसी ना चढ़ाएं https://anjujadon.com/ganesh-ji-ko-tulsi-kab-chadhai-jaati-hai/ https://anjujadon.com/ganesh-ji-ko-tulsi-kab-chadhai-jaati-hai/#respond Sun, 02 May 2021 20:17:31 +0000 https://anjujadon.com/?p=172 गणेशजी को कभी तुलसी ना चढ़ाएं क्योंकि….गणेशजी को प्रथम पूज्य और विघ्नहर्ता माना जाता है। गणेशजी के नियमित रूप से पूजन करने से घर में बुद्धि और लक्ष्मी का स्थाई निवास होता है। माना जाता है।कहा जाता है कि गणेशजी मोदक के भोग से शीघ्र प्रसन्न होते हैं। सभी देवताओं को भोग तुलसी के बिना […]

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गणेशजी को कभी तुलसी ना चढ़ाएं क्योंकि….
गणेशजी को प्रथम पूज्य और विघ्नहर्ता माना जाता है। गणेशजी के नियमित रूप से पूजन करने से घर में बुद्धि और लक्ष्मी का स्थाई निवास होता है। माना जाता है।कहा जाता है कि गणेशजी मोदक के भोग से शीघ्र प्रसन्न होते हैं। सभी देवताओं को भोग तुलसी के बिना नहीं लगाया जाता है। लेकिन कहा जाता है कि गणेशजी को भोग लगाते समय तुलसी कभी ना रखी जाए। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए लेकिन ऐसा क्यों। दरअसल शास्त्रों के अनुसारएक बार गणेशजी गंगाजी के पावन तट पर तपस्या कर रहे थे। वे अक्सर उस जगह पर बैठे ध्यान किया करते थे।

उस समय वे एक रत्न जटित सिंहासन पर विराजमान थे। समस्त अंगों पर चन्दन लगा हुआ था। गले में पारिजात पुष्पों के साथ स्वर्ण-मणि रत्नों के अनेक हार पड़े थे। कमर में अत्यन्त कोमल रेशम का पीताम्बर लिपटा हुआ था। इसी अवसर पर धर्मात्मज की नवयौवनाकन्या तुलसी देवी श्री भगवान् श्रीहरि का स्मरण करती हुई विभिन्न तीर्थों में भ्रमण करने को निकली। वह विभिन्न स्थानों पर होती हुई उसी गंगातट पर जा पहुँची उन्होंने जब गणेशजी को देखा तो वे मोहित हो गई। उसने सोचा-कितना अद्भुत और अलौकिक रूप है गणेशजी का? इनसे वार्तालाप करके विचार जानने चाहिए। उन्होंने सोचा इनसे बात करके इनके विचार मुझे जरूर जानने चाहिए।ऐसा विचार कर तुलसी ने उनके समीप जाकर कहा हे एकदन्त!मुझे यह तो बताओ कि संसार भर के समस्त आश्चर्य एक मात्र तुम्हारे ही विग्रह में किस प्रकार एकत्र हो गये हैं। क्या इसके लिए तुमने कोई तपस्या की है? यदि की है तो किस देवता की थी? गणेशजी तुलसी को देखकर कुछ सकुचाए। सोचा-यह कौन है? मेरे पास आने का क्या प्रयोजन है इसका? जब कोई समाधान न हुआ तो बोले-तुम कौन हो? यहाँ किस प्रयोजन से आई हो? मेरी तप में विघ्न डालने का क्या कारण है? तुलसी बोली-श्रीगणेश मैं धर्मपुत्र की कन्या तुलसी हूँ। तुम्हें यहाँ तपस्या करते देखकर उपस्थित हो गई।

यह सुनकर पार्वतीनन्दन ने कहा-माता तपस्या में विघ्न कभी भी उपस्थित नहीं करना चाहिये। इसमें सर्वथा अकल्याण ही होता है। अब तुम यहाँ से चली जाओ।यह सुनकर तुलसी ने अपनी व्यथा कही उसने कहा मेरी बात सुनो। मैं मनोनुकूल वर की खोज में ही इस समय तीर्थाटन कर रही हूँ। अनेक वर देखे, किन्तु आप पसन्द आये हो मुझे। अतएव आप मुझे भार्या रूप में स्वीकार कर मेरे साथ विवाह कर लीजिये। गणेशजी बोले-माता! विवाह कर लेना जितना सरल है उतना ही कठिन उसके दायित्व का निर्वाह करना है।

इसलिये विवाह तो दु:ख का ही कारण होता है। उसमें सुख की प्राप्ति कभी नहीं होती। विवाह में काम वासना की प्रधानता रहती है, जो कि तत्वज्ञान का उच्छेद करने वाली तथा समस्त संशयों को उत्पन्न करने वाली है। अतएव हे माता! तुम मेरी ओर से चित्त हटा लो। यदि ठीक प्रकार से खोज करोगी तो मुझसे अच्छे अनेक वर तुम्हें मिल जायेंगे।तुलसी बोली-एकदन्त! मैं तो तुमको ही अपने मनोनुकूल देखती हूँ इसलिये मेरी याचना को ठुकराकर निराश करने का प्रयत्न न करो। मेरी प्रार्थना स्वीकार कर लो प्रभो!गणेश बोले-परन्तु, मुझे तो विवाह ही नहीं करना है तब तुम्हारा प्रस्ताव कैसे स्वीकार कर लूँ। माता! तुम कोई और वर देखो और मुझे क्षमा करो। तुलसी को गणेशजी की बात बहुत अप्रिय लगी और उसने कुछ रोषपूर्वक कहा- कहती हूँ कि तुम्हारा विवाह तो अवश्य होगा।

मेरा यह वचन मिथ्या नहीं हो सकता। गणपति का तुलसी को शाप तुलसी प्रदत्त शाप को सुनकर गणपति भी शाप दिये बिना न रह सके। उन्होंने तुरन्त कहा-देवि! तुमने मुझे व्यर्थ ही शाप दे डाला है, इसलिए मैं भी कहता हूँ कि तुम्हें भी जो पति प्राप्त होगा वह असुर होगा तथा उसके पश्चात् महापुरुषों के शापवश तुम्हें वृक्ष होना पड़ेगा। इसी शाप के कारण तुलसी पौधा बनी और यही कारण है कि गणेशजी को तुलसी नहीं चढ़ाई जाती है।

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