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]]>Kamakhya Temple Mystery: हमारे देश में लाखों मंदिर हैं, लेकिन कुछ मंदिर ऐसे हैं जो विचित्र हैं. इन्हीं में से एक कामाख्या मंदिर. असम का ये मंदिर काला जादू के लिए जाना जाता है. मान्यता है कि इस सिद्धपीठ पर हर किसी की मनोकामना पूरी होती है. यहां तंत्र विद्या जानने वालों का तांता लगा रहता है. कामाख्या देवी के 51 शक्तिपीठों में शामिल है. आपको बता दें कि माता सती के अंग अलग-अलग जगहों पर गिरे थे. जहां पर भी माता का कोई अंग या फिर कोई आभूषण गिरा उस जगह को शक्तिपीठ कहा जाता है. कामाख्या में सती माता की महामुद्रा (योनि) है. यहां पर सिद्धी प्राप्त करने के लिए कई लोग जाते हैं.
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कामाख्या मंदिर सभी 108 शक्ति पीठों में से एक प्राचीन मंदिरों में से एक है, जिसकी उत्पत्ति 8वीं शताब्दी में हुई थी। इसे 16वीं शताब्दी में कूचबिहार के राजा नारा नारायण ने फिर से बनवाया था। इसके बाद से इसे कई बार फिर से पुनर्निमित किया गया है।
कामाख्या मंदिर में देवी की योनि की मूर्ति की पूजा की जाती है। इसे गुफा के एक कोने में रखा गया है। इसके अलावा मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है। हालांकि, मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को मंदिर के अंदर जाने की अनुमति नहीं है।
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कामाख्या मंदिर कामरूप के क्षेत्र में स्थित है, जहाँ मां की योनि गिरी थी। ये मंदिर काफी रहस्यों से घिरा हुआ है। जून (आषाढ़) के महीने में कामाख्या के पास से गुजरने वाली ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है। ऐसा कहा जाता है कि नदी लाल होने का कारण है कि इस दौरान मां को मासिक धर्म हो रहे हैं। यह भी कहा जाता है कि मंदिर के चार गर्भगृहों में ‘गरवर्गीहा’ सती के गर्भ का घर है।
जब भगवान राजा दक्ष अपनी बेटी के साथ भगवान शिव का विवाह रचाने के इच्छुक नहीं थे और उन्होंने इस वजह से उन्हें यज्ञ में निमंत्रण भी नहीं दिया था। सती को जब इस बात का पता चला तो उनसे शिव का अपमान सहा नहीं गया। गुस्से में सती आग में कूद गई, जब शिव को इस बारे में पता चला, तो वो दुखी होकर सती को गोद में लेकर तांडव करने लगे। देवताओं को जब इस बात की चिंता हुई तब उन्होंने भगवान विष्णु से इसको लेकर मदद मांगी। उन्होंने फिर अपने सुदर्शन चक्र से सती की लाश के 108 टुकड़े कर दिए और शरीर के वो अंग देश के अलग-अलग हिस्सों में जा गिरे।
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कामाख्या मंदिर एक वार्षिक प्रजनन उत्सव का आयोजन करता है जिसे अंबुबासी पूजा के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान देवी का मासिक धर्म होता है। तीन दिनों तक बंद रहने के बाद, मंदिर चौथे दिन उत्सव के साथ फिर से खुल जाता है। इस पर्व के दौरान कहा जाता है कि ब्रह्मपुत्र नदी भी लाल हो जाती है। इस दौरान शक्ति प्राप्त करने के लिए साधू अलग-अलग गुफाओं में बैठक साधना करते हैं। ये जानकार आपको शायद हैरानी हो, लेकिन लोग यहां लोग मां के मासिक धर्म के खून से लिपटी हुई रूई को प्राप्त करने के लिए घंटों पर लाइन में खड़े रहते हैं।
तांत्रिक विद्या मां की साधना के बाद हासिल होती है. कामाख्या में कई ऐसे साधु हैं जिन्हें दसों महाविद्याएं प्राप्त हैं. मान्यताओं के मुताबिक जादू-टोना से पीड़ित व्यक्तियों का उतारा इस मंदिर में किया जाता है. अगर कोई काला जादू या बुरी आत्माओं के साये से परेशान है तो इस दिक्कत से कामाख्या मां के दरबार में छुटकारा मिल सकता है. मंदिर में नकारात्मकता दूर करने के लिए तावीज भी मिलता है.
ये मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे स्थित है. मान्यता है कि जून के महीने में माता को मासिक चक्र होता है. इस दौरान तीन दिनों तक ब्रह्मपुत्र नदी का पानी लाल रंग का हो जाता है. इन तीन दिनों तक मंदिर का गर्भ गृह बंद रखा जाता है. माता को इससे पहले सफेद रंग का लंबा कपड़ा चढ़ाया जाता है, कपाट खोलने पर कपड़े का रंग बदल जाता है. इसे अंबुचाची वस्त्र कहते हैं, बाद में इसे भक्तों में बांटा जाता है. कामाख्या में इन दिनों में अंबूचाची मेला लगता है जो विश्व प्रसिद्ध है.
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कालिका पुराण के अनुसार, कामाख्या मंदिर चार प्राथमिक शक्तिपीठों में से एक है। जगन्नाथ मंदिर, पुरी, ओडिशा में विमला मंदिर; ब्रह्मपुर, ओडिशा के पास तारा तारिणी; और कोलकाता, पश्चिम बंगाल में दक्षिणा कालिका अन्य तीन हैं।
वशीकरण पूजा
यहां कामाख्या माता के साथ काली माता के दस रूपों की पूजा की जाती है. कामाख्या मंदिर में वशीकरण के लिए भी पूजा और हवन किया जाता है. अगर घर के लोगों के बीच वैमनस्य है तो लोग वशीकरण पूजा करवाते हैं.
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