jaldi shadi karne ke totke – Anju Jadon News & Blogs https://anjujadon.com News & knowledge in Hindi Tue, 10 May 2022 04:45:16 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.5 https://anjujadon.com/wp-content/uploads/2023/03/cropped-anjujadon_new-32x32.jpg jaldi shadi karne ke totke – Anju Jadon News & Blogs https://anjujadon.com 32 32 Jaldi shadi hone ke Upay जल्दी शादी के लिए हनुमानजी की पूजा क्यों करते हैं? https://anjujadon.com/jaldi-shadi-hone-ke-upay/ https://anjujadon.com/jaldi-shadi-hone-ke-upay/#respond Sun, 02 May 2021 19:47:15 +0000 https://anjujadon.com/?p=142 जल्दी शादी के लिए हनुमानजी की पूजा क्यों करते हैं?हनुमानजी को बालब्रह्माचारी माना गया है। मान्यता है कि जब किसी कन्याका विवाह न तय हो रहा हो, तो उसे ब्रह्मचारी हनुमानकी उपासना करना चाहिए। मानस शास्त्र के आधार पर कुछ लोगों की यहधारणा होती है कि सुंदर, बलवान पुरुषके साथ विवाह हो, इस कामनासे कन्याएं […]

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जल्दी शादी के लिए हनुमानजी की पूजा क्यों करते हैं?
हनुमानजी को बालब्रह्माचारी माना गया है। मान्यता है कि जब किसी कन्याका विवाह न तय हो रहा हो, तो उसे ब्रह्मचारी हनुमानकी उपासना करना चाहिए। मानस शास्त्र के आधार पर कुछ लोगों की यहधारणा होती है कि सुंदर, बलवान पुरुषके साथ विवाह हो, इस कामनासे कन्याएं हनुमान की उपासना करती हैं या हनुमान स्तोत्र बोलने के लिए कहते हैं। हनुमानकी उपासना करनेसे ये कष्ट दूर हो जाते हैं व विवाह संभव हो जाता है। व्यक्तियोंके विवाह, भावी वधू या वरके एक-दूसरेसे अवास्तविक अपेक्षाओंके कारण नहीं हो पाते।

यदि प्रारब्ध मंद या मध्यम हो, तो कुलदेवताकी उपासना द्वारा प्रारब्धजनक अडचनें नष्ट हो जाती हैं व विवाह संभव हो जाता है । यदि प्रारब्ध तीव्र हो, तो केवल किसी संतकी कृपासे ही विवाह हो सकता है ।

हनुमान की उपासना करने ये कष्ट दूर हो जाते हैं व विवाह संभव हो जाता है। अपेक्षाओंको कम करनेपर विवाह संभव हो जाता है। यदि प्रारब्ध मंद या मध्यम हो, तो कुलदेवताकी उपासनाद्वारा प्रारब्धजनक अडचनें नष्ट हो जाती हैं व विवाह संभव हो जाता है । यदि प्रारब्ध तीव्र हो, तो केवल किसी संतकी कृपासे ही विवाह हो सकता है । इसीलिए शादी में विघ्न आने पर या देरी होने पर हनुमानजी की आराधना की जाती है।

पूजा में दही का उपयोग करना शुभ क्यों माना जाता है?
पंचामृत का पहला भाग दूध होता है जो हमें गाय से मिलता है गाय में देवी देवताओं का वास होने से दूध को अमृत माना गया है। इसीलिए कहा जाता है कि दूध व दही से सेवा करने से देवता भी प्रसन्न हो जाते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से देखा जाए तो प्रसाद के रूप में पंचामृत में दही खाने से सभी प्रकार के रोगों का नाश भी होता है। इसीलिए भगवान के श्रीकृष्ण अवतार में उन्होंने विशेष रूप से दही व मक्खन का सेवन खुद भी किया व अपने मित्रों को भी करवाया क्योंकि इससे शरीर को अनेक तरह के लाभ होते हैं।

ज्योतिष के अनुसार सफेद रंग को चंद्र का कारक माना जाता है और चन्द्र को मन का कारक माना जाता है। ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार कोई भी सफेद चीज खाने से मन एकाग्रता से उस कार्य में लगता है। पूजा के समय मंत्रोच्चार किया जाता है। दही भी भगवान को अर्पित किया जाता है। इस तरह दही अर्पित करने के बाद मंत्रोच्चार के साथ उसे भगवान के चरणामृत रूप में ग्रहण करने से विचारों में सकारात्मकता बढऩे लगती है। इसीलिए पूजा में दही अर्पित कर सभी को प्रसाद के रूप में बांटना शुभ माना जाता है।

कहानी जब एक नारी ने सिकंदर को दिया अच्छा सबक
सिकंदर विश्व विजय के लिए निकला था। जैसे-जैसे उसका विजय अभियान बढ़ता जा रहा था, उसकी साम्राज्य विस्तार की भूख भी बढ़ती जा रही थी। वह इसी चिंतन में लगा रहता कि कब, कैसे, किधर चढ़ाई की जाए?

उसका संपूर्ण अमला भी इसी दिशा में सक्रिय रहता था। एक दिन सिकंदर ने ऐसे नगर पर आक्रमण किया, जहां निहत्थी स्त्रियों के सिवाय कोई नहीं था। पुरुषविहीन इस नगर में आकर सिकंदर सोच में पड़ गया कि इन निहत्थी महिलाओं से किस प्रकार युद्ध किया जाए?

सोचते-सोचते वह परेशान हो गया और उसे कुछ सुझाई नहीं दिया। उसे बहुत भूख लगने लगी। उसने कहा- मुझे भूख लगी है। मेरे लिए भोजन लाओ। कुछ स्त्रियों ने कपड़े से ढंकी थालियां उसके सामने रख दीं।

सिकंदर ने कपड़ा हटाकर देखा तो थालियों में भोजन के स्थान पर स्वर्ण भरा था। भूख से व्याकुल सिकंदर ने कहा – यह सोना कैसे खाया जा सकता है? मुझे तो रोटियां चाहिए। तब एक महिला ने उत्तर दिया-यदि केवल रोटियां ही खाने के काम में आती होतीं तो क्या तुम्हारे देश में रोटियां नहीं थीं कि तुम दूसरों की रोटियां छीनने के लिए निकल पड़े?

सिकंदर अगले ही दिन वहां से लौट आया। उसने नगर के द्वार पर नगर की महान नारी से लिखवाया- अज्ञानी सिकंदर को इस नगर की महान नारी ने बहुत अच्छा सबक दिया है। राज्य विस्तार की इच्छा धन लिप्सा से प्रेरित होती है और धन लिप्सा विवेक को हर लेती है। इसलिए अपने सद्प्रयासों से जितना मिले, उसी में संतुष्ट रहना चाहिए।

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