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Khatu Shyam Temple: खाटू श्याम को कई नामों से बुलाया जाता है, शीश दानी और कलियुग का भगवान, लोगों का सहारा है खाटू श्याम, जानिए मंदिर का इतिहास और क्या है इसकी महिमा

राजस्थान के सीकर स्थित (Sikar Rajasthan) खाटू श्याम (Khatu Shaym Temple) के मंदिर में हर साल लोगों की काफी भीड़ होती है. कई बार तो श्रद्धालु खाटू श्याम के दर्शन करने के लिए सुबह से शाम तक लाइन में लगते हैं. खाटू श्याम का मंदिर (Khatu Shyam Mandir) आज का नहीं है बल्कि हजारों साल पुराना है. राजस्थान में यह सबसे प्रसिद्ध मंदिर है, यहां दूर दूर से लोग दर्शन करने और निशान चढ़ाने के लिए आते हैं. श्री खाटू श्याम जी का मंदिर भगवान कृष्ण के भक्तों के लिए प्रमुख पूजा स्थल माना जाता है. खाटू श्याम के कई नाम हैं और उनकी महिमा भी बहुत है. आईए जानते हैं इस मंदिर का इतिहास और क्या है खाटू श्याम की महिमा. 

भगवान खाटू श्याम को वर्तमान समय (कलियुग) का देवता माना जाता है. खाटू श्याम मंदिर उत्तर भारत के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है. मंदिर के मूल संस्थापकों के वंशज ऐतिहासिक रूप से मंदिर की सेवा करते रहे हैं.ऐसा माना जाता है कि श्री खाटू श्याम मंदिर में हर साल लगभग एक लाख श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.

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खाटू श्याम जी मंदिर का इतिहास क्या है (History of Khatu Shyam Temple Rajesthan) 

खाटू श्याम राजस्थान के खाटू शहर में भगवान कृष्ण (Lord Krishna) का एक सदियों पुराना मंदिर है. खाटू श्याम मंदिर भगवान कृष्ण की मूर्ति के लिए जाना जाता है जो उनके सिर के रूप में है, श्याम की मूर्ति का रंग भी सांवरा है और उसका आधा सिर कटा हुआ है. राजस्थान के यह राज्य के सबसे प्रमुख पूजा स्थलों में से एक है. इस बेहद खूबसूरत मंदिर की उपस्थिति के कारण ही शहर की लोकप्रियता बढ़ी है.

खाटू श्याम मंदिर की कहानी महाभारत के सदियों पुराने हिंदू महाकाव्य से आती है. पांडवों में से एक, भीम के परपोते वीर बर्बरीक को भगवान कृष्ण का बहुत बड़ा भक्त माना जाता है. उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम के प्रतीक के रूप में अपना सिर बलिदान कर दिया था. इस महान बलिदान से प्रभावित होकर भगवान ने वीर बर्बरीक को आशीर्वाद दिया. वरदान यह था कि कलियुग में श्याम के रूप में उनकी पूजा की जाएगी. बर्बरीक के इस महान बलिदान ने उन्हें “शीश के दानी” का नाम दिया था. श्री खाटू श्याम में श्याम के रूप में पूजे जाने वाले वीर बर्बरीक अपने भक्तों में ‘हारे का सहारा’ के नाम से भी प्रसिद्ध हैं.भगवान कृष्ण के भक्तों का मानना ​​है कि भगवान हमेशा शुद्ध हृदय वाले लोगों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं.

माना जाता है कि मंदिर का निर्माण खाटू श्याम के शासक राजा रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर ने करवाया था. रूप सिंह का एक सपना था जिसमें उन्हें खाटू के एक कुंड से श्याम शीश निकालकर मंदिर बनाने के लिए कहा गया था. उसी कुंड को बाद में ‘श्यामा कुंड’ के नाम से जाना जाने लगा. 

एक मान्यता यह भी है की करीब 1000 साल पहले एकादशी के दिन बाबा का शीश श्यामकुंड में मिला था. यहां पर कुएं के पास एक पीपल का बड़ा पेड़ था. यहां पर आकर गायों का दूध स्वत ही झरने लगता था. गायों के दूध देने से गांव वाले हैरत में थे. गांव वालों ने जब उस जगह खुदाई की तो बाबा श्याम का शीश मिला था. शीश को चौहान वंश की रानी नर्मदा कंवर को सौंप दिया गया, बाद में विक्रम संवत 1084 में इस शीश की स्थापना मंदिर में की गई उस दिन देवउठनी एकादशी थी. भक्त इस पवित्र तालाब में इस विश्वास के साथ पवित्र स्नान करते हैं कि यह स्नान उन्हें सभी रोगों और संक्रमणों से छुटकारा दिलाएगा.

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मंदिर की वर्तमान वास्तुकला दीवान अभयसिंह द्वारा 1720 के आसपास पुनर्निर्मित की गई है. भगवान बर्बरीक, जिन्हें वर्तमान समय (कलियुग) का देवता माना जाता है. यहां भगवान कृष्ण के रूप में उनकी पूजा की जाती है. हिंदू धर्म में जरूरतमंदों के सहायक के रूप में पूजनीय भगवान खाटू श्याम यहां निवास करते हैं और अपने भक्तों की सभी प्रार्थनाओं का उत्तर देने के लिए प्रसिद्ध हैं. 

एक मान्यता यह भी है की करीब 1000 साल पहले एकादशी के दिन बाबा का शीश श्यामकुंड में मिला था. यहां पर कुएं के पास एक पीपल का बड़ा पेड़ था. यहां पर आकर गायों का दूध स्वत ही झरने लगता था. गायों के दूध देने से गांव वाले हैरत में थे. गांव वालों ने जब उस जगह खुदाई की तो बाबा श्याम का शीश मिला था. शीश को चौहान वंश की रानी नर्मदा कंवर को सौंप दिया गया, बाद में विक्रम संवत 1084 में इस शीश की स्थापना मंदिर में की गई उस दिन देवउठनी एकादशी थी.भक्त इस पवित्र तालाब में इस विश्वास के साथ पवित्र स्नान करते हैं कि यह स्नान उन्हें सभी रोगों और संक्रमणों से छुटकारा दिलाएगा.

मंदिर की वर्तमान वास्तुकला दीवान अभयसिंह द्वारा 1720 के आसपास पुनर्निर्मित की गई है. भगवान बर्बरीक,जिन्हें वर्तमान समय (कलियुग) का देवता माना जाता है. यहां भगवान कृष्ण के रूप में उनकी पूजा की जाती है. हिंदू धर्म में जरूरतमंदों के सहायक के रूप में पूजनीय भगवान खाटू श्याम यहां निवास करते हैं और अपने भक्तों की सभी प्रार्थनाओं का उत्तर देने के लिए प्रसिद्ध हैं. 

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खाटू श्याम की कथा

लाक्षागृह की घटना में प्राण बचाकर वन-वन भटकते पांडवों की मुलाकात हिडिंबा नाम की राक्षसी से हुआ। यह भीम को पति रूप में प्राप्त करना चाहती थी। माता कुंती की आज्ञा से भीम और हिडिंबा का विवाह हुआ जिससे घटोत्कच का जन्म हुआ। घटोत्कच का पुत्र हुआ बर्बरीक जो अपने पिता से भी शक्तिशाली और मायाबी था।

– बर्बरीक देवी का उपासक था। देवी के वरदान से उसे तीन दिव्य बाण प्राप्त हुए थे जो अपने लक्ष्य को भेदकर वापस लौट आते थे। इनकी वजह से बर्बरीक अजेय हो गया था।

-महाभारत के युद्ध के दौरान बर्बरीक युद्ध देखने के इरादे से कुरुक्षेत्र आ रहा था। श्रीकृष्ण जानते थे कि अगर बर्बरीक युद्ध में शामिल हुआ तो परिणाम पाण्डवों के विरुद्ध होगा। बर्बरीक को रोकने के लिए श्री कृष्ण गरीब ब्राह्मण बनकर बर्बरीक के सामने आए। अनजान बनते हुए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछ कि तुम कौन हो और कुरुक्षेत्र क्यों जा रहे हो। जवाब में बर्बरीक ने बताया कि वह एक दानी योद्धा है जो अपने एक बाण से ही महाभारत युद्ध का निर्णय कर सकता है। श्री कृष्ण ने उसकी परीक्षी लेनी चाही तो उसने एक बाण चलाया जिससे पीपल के पेड़ के सारे पत्तों में छेद हो गया। एक पत्ता श्रीकृष्ण के पैर के नीचे था इसलिए बाण पैर के ऊपर ठहर गया।

– श्रीकृष्ण बर्बरीक की क्षमता से हैरान थे और किसी भी तरह से उसे युद्ध में भाग लेने से रोकना चाहते थे। इसके लिए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि तुम तो बड़े पराक्रमी हो मुझ गरीब को कुछ दान नहीं दोगे। बर्बरीक ने जब दान मांगने के लिए कहा तो श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका शीश मांग लिया। बर्बरीक समझ गया कि यह ब्राह्मण नहीं कोई और है और वास्तविक परिचय देने के लिए कहा। श्रीकृष्ण ने अपना वास्तविक परिचय दिया तो बर्बरीक ने खुशी-खुशी शीश दान देना स्वीकर कर लिया।

-रात भर भजन-पूजन कर फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को स्नान पूजा करके, बर्बरीक ने अपने हाथ से अपना शीश श्री कृष्ण को दान कर दिया। शीश दान से पहले बर्बरिक ने श्रीकृष्ण से युद्ध देखने की इच्छा जताई थी इसलिए श्री कृष्ण ने बर्बरीक के कटे शीश को युद्ध अवलोकन के लिए, एक ऊंचे स्थान पर स्थापित कर दिया।

-युद्ध में विजय श्री प्राप्त होने पर पांडव विजय का श्रेय लेने हेतु वाद-विवाद कर रहे थे। तब श्रीकृष्ण ने कहा की इसका निर्णय बर्बरीक का शीश कर सकता है। बर्बरीक के शीश ने बताया कि युद्ध में श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र चल रहा था जिससे कटे हुए वृक्ष की तरह योद्धा रणभूमि में गिर रहे थे। द्रौपदी महाकाली के रूप में रक्त पान कर रही थीं।

-श्री कृष्ण ने प्रसन्न होकर बर्बरीक के उस कटे सिर को वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजित होगे तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होगी।

स्वप्न दर्शनोंपरांत बाबा श्याम, खाटू धाम में स्थित श्याम कुण्ड से प्रकट हुए थे। श्री कृष्ण विराट शालिग्राम रूप में सम्वत् 1777 से खाटू श्याम जी के मंदिर में स्थित होकर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण कर कर रहे हैं।

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हर साल लगता है खाटूश्याम मेला
प्रत्येक वर्ष होली के दौरान खाटू श्यामजी का मेला लगता है। इस मेले में देश-विदेश से भक्तजन बाबा खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर में भक्तों की गहरी आस्था है। बाबा श्याम, हारे का सहारा, लखदातार, खाटूश्याम जी, मोर्विनंदन, खाटू का नरेश और शीश का दानी इन सभी नामों से खाटू श्याम को उनके भक्त पुकारते हैं। खाटूश्याम जी मेले का आकर्षण यहां होने वाली मानव सेवा भी है। बड़े से बड़े घराने के लोग आम आदमी की तरह यहां आकर श्रद्धालुओं की सेवा करते हैं। कहा जाता है ऐसा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

भक्तों की इस मंदिर में इतनी आस्था है कि वह अपने सुखों का श्रेय उन्हीं को देते हैं। भक्त बताते हैं कि बाबा खाटू श्याम सभी की मुरादें पूरी करते हैं। खाटूधाम में आस लगाने वालों की झोली बाबा खाली नहीं रखते हैं।

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खाटू श्‍याम कैसे जाएं (Route to reach Khatu Shyam)

खाटूश्याम मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ. इनको खाटू नरेश भी कहते हैं. अगर आप राजस्थान जा रहे हैं तो आपको इनके दर्शन करने चाहिए. लोग दूर दूर से निशान लेकर पैदल आते हैं.

खाटू श्‍याम जाने का राजस्थान से रूट

यहां ट्रेन, बस दोनों ही जाती है 
अगर आप दिल्ली से आ रहे हैं तो पहले झूंझनू आएं और फिर वहां से सीकर 2 घंटे में बस या गाड़ी से जा सकते हैं. 
दिल्ली से चुरू या फिर सालासर के लिए बस चलती है, यह रोडवेज बसें भी आपको राजस्थान के बिकानेर या फिर खाटू श्याम ले जाती है 

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