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]]>क्यों शिवजी को पूजा में नहीं चढ़ाना चाहिए मेंहदी?
शिव को देवों के देव यानी महादेव माना गया है। कहते हैं शिव के पूजन से मनोकामना बहुत जल्दी पूरी होती है। वैसे तो भगवान शिव के पूजन की अनेकानेक विधियां हैं।इनमें से प्रत्येक अपने आप में पूर्ण है और आप अपनी इच्छानुसार किसी भी विधि से पूजन या साधना कर सकते हैं।भगवान शिव क्षिप्रप्रसादी देवता हैं,अर्थात सहजता से वे प्रसन्न हो जाते हैं। इसीलिए उनके पूजन की विधि भी उतनी ही सरल है। शिव मात्र एक लोटे जल से भी प्रसन्न हो जाते हैं तथा अपने भक्तों का उद्धार करते हैं। लेकिन भोलेनाथ को पूजा में मेंहदी नहीं चढ़ाई जाती।
दरअसल इससे जुड़ी एक कथा के अनुसार मेंहदी का पौधा कामधेनु के रक्त से उत्पन्न माना जाता है। इसीलिए पूजा में शिवजी को मेंहदी नहीं चढ़ाई जाती है। उस कथा के अनुसार जमदग्रि ऋषि के पास कामधेनु गाय थी। जिसे सहस्त्रार्जुन ने आश्रम से ले जाना चाहा और उसने इसी कोशिश में कामधेनु को कुछ तीर मारे और जब उन तीरों से घायल कामधेनु का रक्त जमीन पर गिरा तो मेंहदी का पौधा उत्पन्न हुआ। इसीलिए हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार शिवजी को मेंहदी नहीं चढ़ाई जाती।
सावन में शिवजी को पूजन में हल्दी क्यों ना चढ़ाएं?
शिवलिंग शिवजी का ही साक्षात रूप माना जाता है। विधि-विधान से शिवलिंग का पूजन करने से शिवजी प्रसन्न होते हैं और साथ ही सभी देवी-देवताओं की कृपा भी प्राप्त होती है। सामान्यत: देवी-देवताओं के विधिवत पूजन आदि कार्यों में बहुत सी सामग्रियां शामिल की जाती हैं। इन सामग्रियों में हल्दी भी शामिल की जाती है। हल्दी एक औषधि भी है और हम इसका प्रयोग सौंदर्य प्रसाधन में भी किया जाता हैं। धार्मिक कार्यों में भी हल्दी का महत्वपूर्ण स्थान है। कई पूजन कार्य हल्दी के बिना पूर्ण नहीं माने जाते।
पूजन में हल्दी गंध और औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है। हल्दी शिवजी के अतिरिक्त सभी देवी-देवताओं को अर्पित की जाती है।
हल्दी का स्त्री सौंदर्य प्रसाधन में मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक है, इसी वजह से महादेव को हल्दी इसीलिए नहीं चढ़ाई जाती है।जलाधारी पर चढ़ाते हैं हल्दी शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए परंतु जलाधारी पर चढ़ाई जानी चाहिए। शिवलिंग दो भागों से मिलकर बनी होती है। एक भाग शिवजी का प्रतीक है और दूसरा हिस्सा माता पार्वती का। शिवलिंग चूंकि पुरुषत्व का प्रतिनिधित्व करता है अत: इस पर हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है। हल्दी स्त्री सौंदर्य प्रसाधन की सामग्री है और जलाधारी मां पार्वती से संबंधित है अत: इस पर हल्दी जाती है।
सावन में नॉनवेज से करें तौबा, खाएं सादा खाना क्योंकि…
धर्म शास्त्रों में खाने से संबंधित कई नियम बनाए गए हैं ऐसा है सावन में सात्विक भोजन का। इस नियम का सबसे अधिक पालन जैन धर्म के लोग करते हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि वाकई में सावन में नॉनवेज ना खाने के और सादा भोजन करने के अनेक फायदे हैं। दरअसल यह नियम व्यक्ति के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इस माह में मांसाहार करने से कई तरह की बीमारियां लोगों को अपनी गिरफ्त में ले लेती हैं।
इस कारण बारिश के इस मौसम में विशेषज्ञ भी मांसाहार से दूर रहने की सलाह देते हैं। वहीं दूसरी ओर इस नियम के पीछे सबसे बड़ा कारण है कि बारिश के बाद मौसम में नमी बढ़ जाती है और इस नमी के कारण कई तरह के सूक्ष्म जीव और बैक्टिरिया उत्पन्न हो जाते है। सूर्य की रोशनी में ये गरमी के कारण पनप नहीं पाते हैं और बारिश के साथ ही जैसे ही नमी बढ़ती है ये जीव सक्रिय हो जाते हैं। इसलिए सावन में सादा भोजन ही साथ कई बीमारियों से भी बचाव होता है।
शिवजी की पूजा में शहद का विशेष महत्व क्यों?
भगवान शिव के अभिषेक में इसका उपयोग सबसे ज्यादा होता है। शहद में ऐसे कौन से गुण होते हैं जिनके कारण यह इतना खास माना गया है?वास्तव में शहद को उसके गुणों के कारण ही पूजा में उपयोग किया जाता है। शहद तरल होकर भी पानी में नहीं घुलता है। जैसे संसार में रहकर भी अलग रहने के भाव का प्रतीक है। यह घी या तेल की तरह पानी में बिखरता भी नहीं है। यह पंच तत्वों में आकाश तत्व का प्रतीक भी माना गया है। शहद में कई औषधीय गुण भी होते हैं। इसे आयुर्वेद में भी स्थान दिया गया है। शहद ऐसा पदार्थ होता है जिसे पेट और शारीरिक कमजोरी संबंधी सभी बीमारियों में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकी तासिर ठंडी होती है।
एक दार्शनिक कारण यह भी है कि शहद ही ऐसा तत्व है जो जिसके लिए इंसान को प्रकृति पर निर्भर रहना पड़ता है, इसे कृत्रिम रूप से नहीं बनाया जा सकता। मधुमक्खियों द्वारा तैयार किया गया एकदम शुद्ध पदार्थ होता है। जिसके निर्माण में कोई मिलावट नहीं हो सकती। शहद को भगवान को इसी भाव से चढ़ाया जाता है कि हमारे जीवन में भी शहद की तरह ही पवित्र और पुण्य कर्म हों। चरित्र और व्यवहार में शहद जैसा ही गुण हो, जो संसार में रहकर भी उसमें घुले मिले नहीं, उसमें रहे भी और उससे अलग भी हो।
शिवलिंग पर रोज जरूर चढ़ाना चाहिए कच्चा दूध क्योंकि….
शिव के पूजन का विशेष महत्व माना गया है। इसलिए श्रृद्धालु भगवान शिव का जलाभिषेक,दुग्धाभिषेक,करते हैं तो कोई व्रत रखता है।भगवान शंकर को भोलेनाथ कहा गया है अर्थात् शिवजी अपने भक्तों की आस्था और श्रद्धा से बहुत ही जल्द प्रसन्न हो जाते हैं। शिवजी के प्रसन्न होने के अर्थ यही है कि भक्त को सभी मनोवांछित फलों की प्राप्ति हो जाती है। भोलेनाथ को प्रसन्न करने के कई उपाय बताए गए हैं। इनकी पूजा, अर्चना, आरती करना श्रेष्ठ मार्ग हैं। प्रतिदिन विधिविधान से शिवलिंग का पूजन करने वाले श्रद्धालुओं को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
शिवजी को जल्द ही प्रसन्न के लिए शिवलिंग पर प्रतिदिन कच्चा गाय का दूध अर्पित करें। गाय को माता माना गया है अत: गौमाता का दूध पवित्र और पूजनीय है। इसे शिवलिंग पर चढ़ाने से महादेव श्रद्धालु की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।दूध की प्रकृति शीतलता प्रदान करने वाली होती है और शिवजी को ऐसी वस्तुएं अतिप्रिय हैं जो उन्हें शीतलता प्रदान करती हैं। इसके अलावा ज्योतिष में दूध चंद्र ग्रह से संबंधित माना गया है। चंद्र से संबंधित सभी दोषों को दूर करने के लिए प्रति सोमवार को शिवजी को दूध अर्पित करना चाहिए। मनोवांछित फल प्राप्त करने के लिए यह भी जरूरी है कि आपका आचरण पूरी तरह धार्मिक हो। ऐसा होने पर आपकी सभी मनोकामनाएं बहुत ही जल्द पूर्ण हो जाएंगी।
बिना जल चढ़ाए शिव पूजा मानी जाती है अधूरी क्योंकि…
भगवान शिव आदि व अनंत है। इनकी पूजा करने से तीनों लोकों का सुख प्राप्त होता है। भगवान शंकर ने जगत कल्याण के लिए कई अवतार लिए। भगवान शिव के इन अवतारों में कई संदेश भी छिपे हैं। ऐसे ही शिव के पूजन में उन्हें प्रसन्न करने के लिए भी जो सामान उपयोग किए जाते हैं। उनमें भी कई संदेश हैं।भगवान शंकर के जलाभिषेक का भी विशेष महत्व है। कहते है जलाभिषेक से शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं।
धर्म शास्त्रों की एक पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब कालकूट विष निकला तो तीनों लोकों में त्राहिमाम मच गया। सभी देवी-देवताओं की प्रार्थना पर शिवजी ने वह विष ग्रहण कर लिया। शिव कालकूट विष की गर्मी से शिवजी व्याकुल हो गए। इसीलिए शिवलिंग पर जल अर्पित किया जाता है। कहते हैं जल अर्पित करके हमें जन्म-मरण से मुक्त होने की भावना रखनी चाहिए।
जल को ज्ञान का प्रतीक माना गया है और अज्ञानता को जन्म-मरण का कारण माना है, इसलिए ज्ञानरूपी जल हमें जन्म-मरण से मुक्त कराने में सहायक बनता है। साथ ही जल हमें यह संदेश देता है कि हम सभी के साथ घुलमिलकर जीना सीखें। जल की तरह, तरल और निर्मल होना भी सीखें। इससे संदेश मिलता है कि श्रद्धा और आस्था भी ईश्वर की समीपता के लिए महत्वपूर्ण है, चाहे वह किसी भी रूप या अनजाने में हो।
शिवजी के मंदिर जाएं तो पहले करें गणेशजी के दर्शन क्योंकि….
किसी भी मंदिर में भगवान के होने की अनुभूति प्राप्त की जा सकती है। भगवान की प्रतिमा या उनके चित्र को देखकर हमारा मन शांत हो जाता है। हर व्यक्ति भगवान के मंदिर अनेक तरह की प्रार्थनाएं और समस्याएं लेकर जाता है। भगवान के सामने सपष्ट रूप से अपने मन के भावों को प्रकट कर देने से भी मन को शांति मिलती है, बेचैनी खत्म होती है।
शिव मंदिर में जाने से पूर्व ध्यान रखें कि सबसे पहले किसे प्रणाम करना चाहिए? सभी शिव मंदिरों के मुख्य द्वार पर श्रीगणेश की प्रतिमा या कोई प्रतीक चिन्ह अवश्य ही रहता है, सबसे पहले इन्हीं श्री गणेशजी को प्रणाम करना चाहिए। श्रीगणेश को प्रथम पूज्य माना गया है। वेद-पुराण के अनुसार इस संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं। शिवजी ने गणेशजी को प्रथम पूज्य होने का वरदान दिया है।इसी वजह से कोई मांगलिक कर्म, पूजन आदि में सबसे पहले गणेशजी की आराधना ही की जाती है। किसी भी भगवान के मंदिर में जाए सबसे पहले भगवान गणपति का ही स्मरण करना चाहिए। इससे आपकी सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती है और सभी देवी-देवताओं की कृपा आप पर बनी रहती है।
यश और सफलता के ये सूत्र सीखें शिव से..
धार्मिक आस्था से शिव नाम ही जीने की प्रेरणा और ऊर्जा मानी गई है। क्योंकि निराकार रूप में शिव हो या साकार रुप में शंकर, वह सहिष्णुता, उदारता और संयम के महान आदर्श हैं। इन गुणों के बिना जीवन अशांत रहता है। जहां शिव का विष पान जगत के लिए सद्भाव, उदार और सहनशीलता की प्रेरणा देता है, वहीं कामदेव को भस्म करना संयम के साथ सृजन का संदेश देता है।
यही कारण है कि शिव भक्ति सौभाग्य, सुख व मोक्षदायी बताई गई है। शिव भक्ति से ही जुड़े कुछ पौराणिक प्रसंग व्यावहारिक जीवन के लिये भी ऐसे सूत्र बताते हैं जो इंसान की उन्नति और सफलता की राह आसान करते हैं। जानते हैं एक ऐसा ही प्रसंग और उसमें छुपा जीवन सूत्र –
यह प्रसंग है शिव महिमा की अद्भुत स्तुति शिव महिम्र स्त्रोत की रचना का। यह स्त्रोत प्रकृति रूप शिव के निराकार, साकार शक्तियों को उजागर करता है। यह अद्भुत शिव स्त्रोत के रचनाकार गंधर्वराज पुष्पदंत माने जाते हैं।
गंधर्वराज पुष्पदंत ने अपनी खोई दिव्य शक्तियों को शिव के गुण, शक्तियों का गान कर फिर से पा लिया। पुष्पदंत द्वारा की गई शिव की यह स्तुति महिम्र: पद से शुरु हुई। इसलिए इसका नाम शिव महिम्र: स्त्रोत प्रसिद्ध हुआ।
इस शिव स्त्रोत की रचना से जुड़ा दूसरा रहस्य यह भी बताया जाता है कि यह स्वयं भगवान शिव के द्वारा रचा गया। क्योंकि शिवभक्ति से अपने अद्भुत बल को फिर से पाकर गंधर्वराज पुष्पदंत के मन में अहं भाव आ गया था। तब उसके घमण्ड को चूर करने के लिए ही महादेव ने शिव महिम्र स्त्रोत को अपने गण भृंगी के दांतों पर उभारा। तब पुष्पदंत यह समझ नतमस्तक हो गया कि उसके जरिए जगत कल्याण के लिए भगवान शिव ने ही यह स्त्रोत प्रकट किया है।
इस प्रसंग में जीवन से जुड़ा यही सूत्र है कि किसी भी कठिन हालात में अपनी योग्यता, बल और खूबियों को याद रख आत्मविश्वास व मनोबल को बनाएं रखें। तब अपनी बुद्धि, शारीरिक बल या आर्थिक शक्तियों के सदुपयोग से सफलता पाकर अच्छा वक्त फिर से लौट आता है। वैसे ही जैसे गंधर्वराज पुष्पदंत ने अपने बल को पाया।
यही नहीं शिव की भांति संयमशील व पुष्पदंत की तरह अहंकार से परे होने पर यश व सम्मान प्राप्त होता है। सफलता के लिये ऐसी खूबियां हर इंसान के लिये अहम है।
इस तरह शिव से जुड़े अनेक प्रसंग प्रमाण है कि शिव नाम हो या शिव भक्ति दोनों ही जीवन में सुख, सफलता व तरक्की के लिये आत्मविश्वास, मनोबल, आत्मसम्मान बनाए रखने व पाने का बेहतर उपाय है।
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