शिवजी एक मात्र ऐसे देवता हैं जिन्हें लिंग रूप में पूजा जाता है।शिव ही वे देवता हैं जिन्होंने कभी कोई अवतार नहीं लिया। शिव कालों के काल है यानी साक्षात महाकाल हैं। वे जीवन और मृत्यु के चक्र से परे हैं इसीलिए समस्त देवताओं में एकमात्र वे परब्रम्ह है इसलिए केवल वे ही निराकार लिंग के रूप में पूजे जाते हैं। इस रूप में समस्त ब्रम्हाण्ड का पूजन हो जाता है क्योंकि वे ही समस्त जगत के मूल कारण है।
शिव का पूजन लिगं रूप में ही ज्यादा फलदायक माना गया है। शिव का मूर्तिपूजन भी श्रेष्ठ है किंतु लिंग पूजन सर्वश्रेष्ठ है।शिव पिंडी की परिक्रमा में जलहरी या जलाधारी (अरघा का आगे निकला भाग) की दूसरी छोर तक जाकर, उसे लांघे बिना मुड़े व विपरीत दिशामें चलकर परिक्रमा पूर्ण करें। शास्त्रों के अनुसार इस तरह ही शिवलिंग की परिक्रमा करना चाहिए। शिवपुराण के अनुसार शिवलिंग जब प्रकट हुआ था तो वह अग्रि के रूप में था।
पृथ्वी पर शिवलिंग किस तरह स्थापित हो यह एक समस्या थी।
इसीलिए तब सारे देवताओं ने मिलकर प्रार्थना कि तो पार्वती जी ने अपने तप के प्रभाव से जलाधारी प्रकट की। इसका आकार स्त्री की योनी के समान है। इसीलिए माना जाता है कि शिवलिंग को जलाधारी से अलग करने पर दोष लगता है। कहा जाता है कि पार्वती शक्ति का रूप है और जलाधारी से शक्ति प्रक्षेपित होती है; इसलिए सामान्य श्रद्धालु यदि उस जलाधारी को लांघे, तो उसे उस शक्तिसे कष्ट हो सकता है। अत: पिंडीकी अर्धपरिक्रमा ही करना चाहिए।