घर में क्यों और किस दिशा में लगाना चाहिए भगवान की तस्वीर?
वास्तु के अनुसार हमारा पूरा घर वास्तु पुरूष के अनुरूप होना चाहिए। अगर घर वास्तुपुरूष के अनुरूप नहीं होता है तो घर वालों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वास्तु के अनुसार घर में ईशान्य कोण को पूजन करने के लिए, भगवान की मूर्ति स्थापना के लिए या भगवान की तस्वीर लगाने के लिए सबसे उत्तम कोना माना गया है।
दरअसल इसका मुख्य कारण यह है कि ईशान्यकोण यानी उत्तर पूर्वी कोने को वास्तु पुरूष का सिर माना गया है। इसीलिए घर के उत्तर पूर्वी कोने को वास्तु के अनुसार सात्विक ऊर्जाओं का प्रमुख स्त्रोत माना गया है। ईशान्य कोण का अधिपति शिव को माना गया है। ईशान्य कोण घर के सभी अन्य क्षेत्रों से नीचा होना चाहिए। ऐसे घर में सकारात्मक ऊर्जा का निवास होता है बाद में ये ऊर्जाएं पूरे घर में फैल जाती है। साथ उत्तर -पूर्व बृहस्पति की दिशा है। बृहस्पति ग्रह जीवन का कारक है। बृहस्पति को ज्योतिष के अनुसार धर्म व आध्यात्म का कारक ग्रह माना गया है। इसीलिए भगवान की तस्वीर ईशान्य कोण में लगाना वास्तु के अनुसार बहुत शुभ माना गया है।
चातुर्मास में क्या करें, क्या नहीं?
हिंदू धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व है। चातुर्मास में मांगलिक कार्य नहीं किए जाते तथा धार्मिक क्रिया-कलापों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। चातुर्मास के अंतर्गत सावन, भादौ, अश्विन व कार्तिक मास आता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। चातुर्मास का प्रारंभ 11 जुलाई (देवशयनी एकादशी) से हो चुका है जिसका समापन 6 नवंबर(देव प्रबोधिनी एकादशी पर होगा। हमारे धर्म ग्रंथों में चातुर्मास के दौरान कई नियमों का पालन करना अनिवार्य बताया गया है तथा उन नियमों का पालन करने से मिलने वाले फलों का भी वर्णन किया गया है। चातुर्मास में क्या करें और क्या नहीं, इसकी संक्षिप्त जानकारी नीचे दी गई है-
यह ग्रहण करें
– शारीरिक शुद्धि या सुंदरता के लिए परिमित प्रमाण(संतुलित मात्रा) के पंचगव्य( दूध, दही, घी गोमय, गोबर) का।
– वंश वृद्धि के लिए नियमित दूध का।
– पापों के नाश व पुण्य प्राप्ति के लिए एकभुक्त, नक्तव्रत, अयाचित(बिना मांगा) भोजन या सर्वथा उपवास करने का व्रत ग्रहण करें।
इनका त्याग करें
– मधुर स्वर के लिए गुड़ का त्या करें।
– दीर्घायु अथवा पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का।
– शत्रु नाश के लिए कड़वे तेल का।
– सौभाग्य के लिए मीठे तेल का।
– स्वर्ग प्राप्ति के लिए पुष्पादि भोगों का।
– प्रभु शयन(चातुर्मास) के दिनों में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य जहाँ तक हो सके न करें। पलंग पर सोना, भार्या का संग करना, झूठ बोलना, मांस, शहद और दूसरे का दिया दही-भात आदि का भोजन करना, हरी सब्जी, मूली, पटोल एवं बैंगन आदि का भी त्याग कर देना चाहिए।
सावन में जरूर करना चाहिए स्फटिक शिवलिंग की पूजा क्योंकि…
स्फटिक को हीरे का उपरत्न कहा जाता है। स्फटिक को कांचमणि, बिल्लोर, बर्फ का पत्थर तथा अंग्रेजी में रॉक क्रिस्टल कहा जाता है। यह एक पारदर्शी रत्न है। इसे स्फटिक मणि भी कहा जाता है। स्फटिक बर्फ के पहाड़ों पर बर्फ के नीचे टुकड़े के रूप में पाया जाता है। यह बर्फ के समान पारदर्शी और सफेद होता है। यह मणि के समान है। इसलिए स्फटिक के श्रीयंत्र को बहुत पवित्र माना जाता है। यह यंत्र ब्रम्हा, विष्णु, महेश यानि त्रिमूर्ति का स्वरुप माना जाता है।स्फटिक श्रीयंत्र का स्फटिक का बना होने के कारण इस पर जब सफेद प्रकाश पड़ता है तो ये उस प्रकाश को परावर्तित कर इन्द्र धनुष के रंगों के रूप में परावर्तित कर देती है।
यदि आप चाहते है कि आपकी जिन्दगी भी खुशी और सकारात्मक ऊर्जा के रंगों से भर जाए तो घर में सावन में स्फटिक शिवलिंग स्थापित करें। यह शिवलिंग घर से हर तरह की नेगेटिव एनर्जी को दूर करता है। घर में पॉजिटिव माहौल को बनाता है। जिस घर में यह शिवलिंग स्थापित कर दिया जाता है। पूरे सावन के महीने इसका नियमित रूप से अभिषेक करने से घर से कई तरह के वास्तुदोष दूर होते हैं। जिस घर में ये शिवलिंग स्थापित करके एक महीने तक नियमित रूप से पंचामृत द्वारा अभिषेक किया जाता है।वहां पैसा बरसने लगता है साथ ही जो भी व्यक्ति इसे स्थापित करता है उसके जीवन में नाम पैसा दौलत शोहरत सब कुछ होता है।
सावन में शिवलिंग पर दूध क्यों चढ़ाया जाता है?
हमारे हिंदू धर्म में त्रिदेवों अर्थात भगवान ब्रह्मा, विष्णु व शंकर का अपना एक विशिष्ट स्थान है और इसमें भी भगवान शंकर का चरित्र जहाँ अत्यधिक रोचक हैं वहीं यह पौराणिक कथाओं में अत्यधिक गूढ रहस्यों से भी भरा हुआ है। भगवान शिव को विश्वास का प्रतीक माना गया है क्योंकि उनका अपना चरित्र अनेक विरोधाभासों से भरा हुआ है जैसे शिव का अर्थ है जो शुभकर व कल्याणकारी हो, जबकि शिवजी का अपना व्यक्तित्व इससे जरा भी मेल नहीं खाता, क्योंकि वे अपने शरीर में इत्र के स्थान पर चिता की राख मलते हैं तथा गले में फूल-मालाओं के स्थान पर विषैले सर्पों को धारण करते हैं। वे अकेले ही ऐसे देवता हैं जो लिंग के रूप में पूजे जाते हैं। सावन में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का विशेष महत्व माना गया है। इसीलिए शिव भक्त सावन के महीने में शिवजी को प्रसन्न करने के लिए उन पर दूध की धार अर्पित करते हैं।
पुराणों में भी कहा गया है कि इससे पाप क्षीण होते हैं। लेकिन सावन में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का सिर्फ धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व भी है। सावन के महीने में दूध का सेवन नहीं करना चाहिए। शिव ऐसे देव हैं जो दूसरों के कल्याण के लिए हलाहल भी पी सकते हैं। इसीलिए सावन में शिव को दूध अर्पित करने की प्रथा बनाई गई है क्योंकि सावन के महीने में गाय या भैस घास के साथ कई ऐसे कीड़े-मकोड़ो को भी खा जाती है। जो दूध को स्वास्थ्य के लिए गुणकारी के बजाय हानिकारक बना देती है। इसीलिए सावन मास में दूध का सेवन न करते हुए उसे शिव को अर्पित करने का विधान बनाया गया है।
आप जानते हैं,शाम के समय किसी को भी पैसे क्यों नहीं देने चाहिए?
हिन्दू धर्म में शाम के समय को पूजा व आराधना के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। शाम का समय भगवान की आराधना के लिए सबसे शुभ होता है ऐसी मान्यता है। सूर्यास्त के समय से जुड़ी सिर्फ यही एक मान्यता नहीं है। ऐसी अनेक मान्यताएं हैं जिनका पालन हमारे बड़े-बुजूर्गो ने जरूरी माना है या जिनका पालन ना करने पर किसी ना किसी तरह का आर्थिक या शारीरिक हानि होती है जैसे सूर्यास्त के समय भोजन ना करना, पढ़ाई ना करना, घर की साफ-सफाई ना करना आदि ऐसी ही कुछ मान्यताएं हैं। ऐसी ही एक मान्यता है कि सूर्यास्त के समय किसी को पैसा नहीं देना चाहिए।
हमारे शास्त्रों के अनुसार सूर्यास्त के समय पैसे देने से या मां लक्ष्मी रूष्ट हो जाती हैं। सूर्यास्त के समय किसी को पैसा देने से घर में व व्यापार में बरकत नहीं रहती क्योंकि शाम के समय को वैदिक काल से ही ऐसा समय माना जाता है जिसमें किसी भी तरह का मंत्र जप करने, पूजन करने से या दीप प्रज्वलित करने से विशेष फल प्राप्त होता है। चौबीस घंटे के पूरे दिन में सिर्फ सूर्य उदयके पूर्व व सूर्यास्त को ही सबसे अधिक शुभ व फलदायी माना जाता है। इसीलिए इस समय ध्यान व आराधना के लिए विशेष माना गया है।
इसीलिए इस समय किए गए हर कार्य का विशेष महत्व होता है और उसका विशेष फल प्राप्त होता है। इस समय किसी के द्वारा पैसे दिए जाते हैं तो लेने वाले के लिए इसे बहुत अच्छा शगुन माना जाता है क्योंकि इस समय किसी के द्वारा पैसा दिया जाना व घर में लक्ष्मी आने से घर से दरिद्रता मिटती है।
शनि की उतरती हुई साढ़ेसाती को अच्छा क्यों माना जाता है?
शनि को न्यायाधिश का पद प्राप्त है। यह हमें हमारे कर्मों का फल प्रदान करता है। जिस व्यक्ति के जैसे कर्म होते हैं उसी के अनुसार उन्हें फल की प्राप्ति होती है। शनि साढ़ेसाती और ढैय्या के समय सबसे अधिक प्रभावी होता है।किसी भी राशि पर शनि देव का अच्छा और बुरा असर साढ़े सात साल तक होता है। इस समय को शनि की साढ़े साती कहा जाता है।
कहा जाता है शनि की साढ़े साती बुरी होती है और इस समय में व्यक्ति परेशान हो जाता है। व्यक्ति के पास कुछ नही बचता। लेकिन ऐसा नही है खत्म होती शनि की साढ़े साती में जातक को शनि देव कुछ न कुछ देकर ही जाते हैं।
शनि की साढ़े-साती वह समय है जब इंसान के अच्छे और बुरे दोनों तरह के कार्यों को परिणाम मिलता है। शनि न्याय के देवता है। साढ़ेसाती की शुरूआत का समय जातक की परिक्षा का समय होता है। शनि जातक को इन साढ़े-सात सालों में सोने से तपाकर कुंदन बनाता है। साढ़े-सात सालों के बाद शनि जाते-जाते कुछ न कुछ देकर ही जाता है। इसीलिए शनि की साढ़ेसाती के अंतिम चरण को बहुत शुभ और अच्छे परिणाम देने वाली माना जाता है।
शनिदेव को मनाने के लिए हनुमानजी को तेल क्यों चढ़ाते हैं?
हनुमानजी को संकटमोचन कहा जाता है। कहते हैं हनुमानजी अपने सभी भक्तों के जीवन से संकट को हर लेते हैं। अधिकतर ज्योतिष शनि देव को प्रसन्न करने के लिए या उनके कोप को कम करने के लिए हनुमान के पूजन को कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार शनि और हनुमान से जुड़ी एक कथा है।
कथा के अनुसार शनि को स्वभाव से क्रुर ग्रह माना गया है। शनि का स्वभाव कुछ उद्दण्ड था। अपने स्वभाव के चलते उन्होंने श्री हनुमानजी को तंग करना शुरू कर दिया। बहुत समझाने पर भी वह नहीं माने तब हनुमानजी ने उसको सबक सिखाया। हनुमान की मार से पीडि़त शनि ने उनसे क्षमा याचना की तो करुणावश हनुमानजी ने उनको घावों पर लगाने के लिए तेल दिया। शनि महाराज ने वचन दिया जो हनुमान का पूजन करेगा और उन्हें तेल अर्पित करेगा वे उस पर कृपा करेंगे। इसीलिए शनि की साढ़े-साती या किसी भी तरह से शनि का अशुभ प्रभाव होने पर उससे मुक्ति के लिए हनुमानजी को तेल अर्पित किया जाता है।