सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनकी संतान कुछ ऐसा काम करे जिससे उनके परिवार का नाम रोशन हो। कहते हैं माता-पिता बालक को जैसे माहौल या पर्यावरण में रखते हैं बच्चे के संस्कार वैसे ही होते हैं। माता-पिता उसे जैसा मार्गदर्शन देते हैं वह उसी रंग में रंग जाता है। इसीलिए किसी मनौवैज्ञानिक ने ठीक ही कहा है अपने बच्चे को जन्म से पहले पांच वर्ष तक अपने पास रखो, फिर वह जन्मभर आपका रहेगा।
इसीलिए जातकर्म संस्कार के अंर्तगत बालक को शहद व घी चटाने का या घी व शहद को मिलाकर सोने की शलाका से जीभ पर ऊं लिखने का वर्णन मिलता है। मान्यता है कि पिता जब बालक की जीभ पर ओम् लिखते हैं तब वह अपने ऊपर यह जिम्मेदारी लेता है कि वह अपनी संतान का ना सिर्फ जीवन के भौतिक मार्ग पर बल्कि आध्यात्मिक मार्ग पर मार्गदर्शन करेगा। सोने की शलाका से ऊं लिखने बच्चे का आध्यात्मिक विकास होता है। कहते हैं कि जिस बच्चे का आध्यात्मिक विकास होता है।
वह न सिर्फ एक अच्छा व्यक्ति होता है बल्कि एक सफल व्यक्ति होता है। इसका एक कारण यह भी है कि एक भाग घी और तीन भाग शहद मिलाकर शिशु को चटाने से उसकी आंतों में जो भी मल जमा होता है।वह बाहर निकल जाता है।अक्सर डॉक्टर्स उसे दूर करने के लिए अरंडी का तेल देते हैं जिससे आंतों को नुकसान पहुंचता है। इससे बच्चे को कभी पेट से संबंधित बीमारियां नहीं होती हैं।