Dharm – Anju Jadon News & Blogs https://anjujadon.com News & knowledge in Hindi Mon, 05 Aug 2024 00:01:10 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5.5 https://anjujadon.com/wp-content/uploads/2023/03/cropped-anjujadon_new-32x32.jpg Dharm – Anju Jadon News & Blogs https://anjujadon.com 32 32 बेलपत्र बेवजह खाने से दे रहा मुंह की बीमारी https://anjujadon.com/bel-patra-ke-patte-khane-ke-fayde-aur-nuksan/ https://anjujadon.com/bel-patra-ke-patte-khane-ke-fayde-aur-nuksan/#respond Mon, 05 Aug 2024 00:01:02 +0000 https://anjujadon.com/?p=2215 बेलपत्र बेवजह खाने से दे रहा मुंह की बीमारी, बेलपत्र के पत्ते खाने से क्या फायदे हो रहे हे इस पोस्‍ट में हम इसी बात पर चर्चा कर रहे है । बेलपत्र के फल व जड़ पर शोध हो चुका है। लेकिन पत्‍ति‍यों पर अभी कोई शोध नही हुआ है। चिकित्सकों के अनुसार बेलपत्र की […]

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बेलपत्र बेवजह खाने से दे रहा मुंह की बीमारी, बेलपत्र के पत्ते खाने से क्या फायदे हो रहे हे इस पोस्‍ट में हम इसी बात पर चर्चा कर रहे है । बेलपत्र के फल व जड़ पर शोध हो चुका है। लेकिन पत्‍ति‍यों पर अभी कोई शोध नही हुआ है। चिकित्सकों के अनुसार बेलपत्र की पत्ती अधिक समय तक खाने से मुंह का सलाइवा कम होने लगता है। जब मुंह में लार नहीं बनेगी तो स्वाद नहीं आएगा और जलन व ऐंठन होने लगती है। भगवान शिव की पूजा के साथ औषधि के रूप में भी उपयोग में आने वाला बेलपत्र इन दिनों उन लोगों के लिए बड़ी परेशानी का कारण बन गया है, जिन्होंने बिना किसी विशेषज्ञ या डाॅक्‍टर की सलाह के इसका असीमित रूप से सेवन करना शुरू कर दिया है। इससे उनके मुंह का स्वाद चला गया। मुंह में जलन से असहनीय पीड़ा हो रही है, चिकनापन रहता है, जिससे उन्हें बेचैनी और घबराहट हो रही है।

लगातार इस तरह की समस्याओं से ग्रसित मरीजों के पहुंचने पर जब डाक्टरों के पास पहुचने लगे तो ने इन मरीजों की मे़डिकल हिस्ट्री व खान पान को लेकर पूछताछ की तो पचा चला कि इन सभी ने इंटरनेट मीडिया पर बीमारी दूर भगाने व स्वस्थ रहने के उपाय सुनाकर इसका सेवन शुरू किया था।

प्रवचन में कुछ डोंगी संतो ने इसको खाने की सलाह दे रहे है

यहीं नहीं कुछ डोंगी संतों ने भी मन में लोगो को कुछ नया कर द‍िखाने के लिये ओर लोगो को आर्कशित करने के लिये घरेलू समस्याओं के निवारण के लिए इसके सेवन का उल्लेख अपने प्रवचनों में कर रहे है। फिर कुछ लोग परेशानी में घिरने के बाद जब डाक्टरों और आयुर्वेदाचार्यो के पास पहुंचे तो उनके कहने पर इन्होंने बेलपत्र का सेवन बंद कर दिया तो अब उनके मुंह का स्वाद वापस लौटने लगा है। डाक्टरों के अनुसार देश के अन्य शहरों में ऐसे उदाहरण देखने के मिले रहे हैं।

टीवी पर प्रवचन सुने और खाने लगे बेलपत्र

ग्‍वालियर के 50 वर्षीय रवि अग्रवाल का कहना है कि पिछले 1 साल से बेलपत्र की दो पत्तियां हर सुबह चबाते हैं। कुछसमय से मुंह में छाले, नमक का स्वाद आना बंद हो गया, जलन बनी रहती है, जिसका अब इलाज ले रहा हूं। भिंड के रामसेवक शर्मा का कहना है कि बेलपत्र खाने से उनके मुंह का स्वाद गायब हो चुका है, जिसका उपचार करा रहा हैं। टीवी पर प्रवचनों में बेलपत्र का उल्लेख सुन इसके सेवन शुरू किया था।

बेलपत्र के हर भाग का अपना महत्व, होता है फायदा

आयुर्वेद के जानकारो का कहना है कि बेलपत्र की पत्ती पर अभी तक कोई शोध नहीं हुआ है पर यह माना जाता है कि कड़वे फल, रस या पत्ती खाने से ब्लड शुगर में लाभ होता है, इसलिए काफी सारे लोग पत्ती का सेवन करते हैं।

फल व जड़ पर हो चुका शोध

बेलपत्र के फल व जड़ पर शोध हो चुका है। पके हुए फल का सेवन करने से कब्ज दूर होती है और पेट संबंधी विकार दूर हो जाते हैं व पाचन क्रिया ठीक रहती है। डायरिया, दस्त में बेलपत्र का कच्चा फल लाभदायक है। बेलपत्र की जड़ हृदय संबंधी रोग में लाभदायी है। जड़ को सुखाकर उसका चूर्ण बनाकर उसे दूध के साथ सेवन करने से हृदय संबंधी बीमारी में लाभ मिलता है और हृदय की नसें मजबूत होती हैं। परंतु यह सभी उपचार विशेषज्ञ चिकित्सकीय सलाह पर ही कारगर हैं।

इसलिए होती है परेशानी

चिकित्सकों के अनुसार बेलपत्र की पत्ती अधिक समय तक खाने से मुंह का सलाइवा कम होने लगता है। जब मुंह में लार नहीं बनेगी तो स्वाद नहीं आएगा और जलन व ऐंठन होने लगती है। पत्तों में माइकोटोक्सिन होता जो त्वचा संबंधी परेशानी पैदा कर सकता है, इसी तरह से पत्तों में आक्सलिक एसिड होता जो उल्टी व पेट दर्द की समस्या दे सकता है व सोडियम रक्तचाप को बढ़ाने का काम करता है। गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन नहीं करना चाहिए। यदि पत्ती का सेवन करना है तो वैद्य की सलाह पर ही करें।

बेलपत्र खाने के बाद मुंह का स्वाद, जलन और चिकनापन की शिकायत लेकर अब तक करीब 50 से अधिक मरीज आ चुके हैं। यह समस्या ग्वालियर सहित देश भर के अलग-अलग शहरों में लोगों को यह परेशानी हो रही है। जिन लोगों ने बेलपत्र का सेवन करना बंद किया तो वह ठीक होने लगे।

वनस्पति में एल्केलाइड होता है, जिसकी मात्रा पत्ती में उसकी उम्र के हिसाब से अलग अलग होती है। जिसे औषधि गुण भी कहा जाता है, जिसकी उपयोगिता पत्ती की उम्र के हिसाब से बदलती है। इनका सेवन जानकार के अनुसार ही किया जा सकता अन्यथा यह नुकसानदायी हो सकते हैं।

(note : ये लेख आम धारणाओं और लोगो से प्राप्‍त जानकारियो पर आधार‍ित है। anjujadon.com इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है।)

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Chausath Yogini Temple: रहस्यमयी मंदिर, भारत का ये चौसठ योगिनी मंदिर, हर कमरे में है एक शिवलिंग, विदेशी भी आते थे तंत्र-मंत्र सीखने https://anjujadon.com/chausath-yogini-temple-ekattarso-mahadev-mandir-chausath-yogini-temple/ https://anjujadon.com/chausath-yogini-temple-ekattarso-mahadev-mandir-chausath-yogini-temple/#respond Wed, 22 Mar 2023 09:53:21 +0000 https://anjujadon.com/?p=1677 The Chausath Yogini Temple, Mitaoli, also known as Ekattarso Mahadeva Temple. यहां पर कई प्राचीन और चमात्कारिक मंदिर हैं। इनमें कई मंदिर बेहद रहस्यमयी हैं जिनमें मध्य प्रदेश का चौसठ योगिनी मंदिर भी शामिल है। भारत में चार चौसठ योगिनी मंदिर हैं। ओडिशा में दो मंदिर हैं और मध्य प्रदेश में दो हैं। लेकिन मध्य प्रदेश के मुरैना में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर सबसे प्राचीन और रहस्यमयी है।

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The Chausath Yogini Temple, Mitaoli, also known as Ekattarso Mahadeva Temple, is an 11th-century temple in Morena district in the Indian state of Madhya Pradesh. Build during Kachchhapaghata reign, it is one of the well-preserved Yogini temples in India.

It takes a More than Hundred Steps to reach the Chausath Yogini temple of Morena, Madhya Pradesh, which stands on a hillock in Mitaoli village. The nearest city, Gwalior, is some 40km away. This is probably a good thing, because it grants the monument an uninterrupted view of the Narmada valley, which makes the tedious journey worth it. Beware, though, for as vast as the blue horizon stretches, the stories of the belligerent practices of the deities run deep.

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The Temple of Mitaoli is a part of 11 Chausath Yogini temples found across India.

Each clan of Chausath Yoginis had seven or eight matriarch leaders; the presence of clans has been identified by temples in states of Odisha, Jabalpur or Morena, Madhya Pradesh.

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भारत को मंदिरों का देश कहा जाता है। यहां पर कई प्राचीन और चमात्कारिक मंदिर हैं। इनमें कई मंदिर बेहद रहस्यमयी हैं जिनमें मध्य प्रदेश का चौसठ योगिनी मंदिर भी शामिल है। भारत में चार चौसठ योगिनी मंदिर हैं। ओडिशा में दो मंदिर हैं और मध्य प्रदेश में दो हैं। लेकिन मध्य प्रदेश के मुरैना में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर सबसे प्राचीन और रहस्यमयी है। भारत के सभी चौसठ योगिनी मंदिरों में यह इकलौता मंदिर है जो अभी तक ठीक है। मुरैना में स्थित यह मंदिर तंत्र-मंत्र के लिए दुनियाभर में जाना जाता था। इस रहस्यमयी मंदिर को तांत्रिक यूनिवर्सिटी भी कहते थे। यहां पर दुनियाभर से लाखों तांत्रिक तंत्र-मंत्र की विद्या सीखने के लिए आते थे। आईए जानते हैं मरैना में स्थित प्राचीन और रहस्यमयी चौसठ योगिनी मंदिर के बारे में। 

मध्यप्रदेश का प्राचीन चौसठ योगिनी मंदिर गोलाकार है और इसमें 64 कमरे हैं। इन सभी 64 कमरों में भव्य शिवलिंग स्थापित है। यह मंदिर मुरैना जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मितावली गांव में बना यह रहस्यमयी मंदिर दुनियाभर में प्रसिद्ध है। 

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इस अद्भुत मंदिर का निर्माण करीब 100 फीट की ऊंचाई पर किया गया है और पहाड़ी पर स्थित यह गोलाकार मंदिर किसी उड़न तश्तरी की तरह नजर आता है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए 200 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।  मंदिर के बीच में एक खुले मंडप का निर्माण किया गया है जिसमें एक विशाल शिवलिंग स्थापित है। बताया जाता है कि यह मंदिर 700 साल पुराना है।  

इस मंदिर का निर्माण कच्छप राजा देवपाल ने 1323 ई (विक्रम संवत 1383) में करवाया था। इस मंदिर में सूर्य के गोचर के आधार पर ज्योतिष और गणित की शिक्षा दी जाती थी जिसका यह मुख्य केंद्र था। कहा जाता है कि यह भगवान शिव का मंदिर है जिसकी वजह से लोग तंत्र-मंत्र सीखने के लिए यहां आते थे। चौसठ योगिनी मंदिर के हर कमरे में शिवलिंग और देवी योगिनी की मूर्ति स्थापित थी जिसकी वजह से इस मंदिर का नाम चौसठ योगिनी रखा गया था। हालांकि कई मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं। इसके चलते अब बची मूर्तियों को दिल्ली स्थित संग्राहलय में रख दिया गया है। 101 खंभों वाले इस मंदिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने प्राचीन ऐतिहसिक स्मारक घोषित किया हुआ है।

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बतया जाता है कि ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ने मुरैना में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर के आधार पर ही भारतीय संसद को बनवाया था। लेकिन यह बात ना किसी बात में लिखी गई है और ना ही संसद की वेबसाइट पर ऐसी कोई जानकारी दी गई है। भारतीय संसद न सिर्फ इस मंदिर से मिलती है बल्कि इसके अंदर लगे खंबे भी मंदिर के खंभों की तरह ही दिखते हैं। 

स्थानीय लोगों का मानना है कि आज भी यह मंदिर भगवान शिव की तंत्र साधना के कवच से ढका है। इस मंदिर में किसी को भी रात में रुकने की अनुमित नहीं है। तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध चौसठ योगिनी मंदिर में भगवान शिव की योगिनियों को जागृति करने का कार्य होता था।

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मान्याता है कि मां काली का चौसठ योगिनी माता अवतार हैं। घोर नाम के राक्षस के साथ युद्ध लड़ते हुए माता आदिशक्ति काली ने इस रुप को धारण किया था। यह रहस्यमयी मंदिर इकंतेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी मशहूर है।

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12 ज्योतिर्लिंग के नाम और कहाँ स्थित है? 12 Jyotirling Names & Places in India https://anjujadon.com/12-jyotirlinga-kaha-kaha-hai-12-jyotirling-names-places-in-india/ https://anjujadon.com/12-jyotirlinga-kaha-kaha-hai-12-jyotirling-names-places-in-india/#comments Wed, 08 Feb 2023 14:55:24 +0000 https://anjujadon.com/?p=1617 12 ज्योतिर्लिंग कौन कौन से राज्य में है? भारत में प्रमुख शिवस्थान अर्थात ज्योतिर्लिंग बारह हैं । ये तेजस्वी रूप में प्रकट हुए । तेरहवें पिंड को कालपिंड कहते हैं । काल-मर्यादा के परे पहुंचे पिंड को (देहको) कालपिंड कहते हैं । ये बारह ज्योतिर्लिंग निम्नानुसार हैं । ज्योतिर्लिंग स्थान १. सोमनाथ प्रभासपट्टण, वेरावल के […]

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12 ज्योतिर्लिंग कौन कौन से राज्य में है? भारत में प्रमुख शिवस्थान अर्थात ज्योतिर्लिंग बारह हैं । ये तेजस्वी रूप में प्रकट हुए । तेरहवें पिंड को कालपिंड कहते हैं । काल-मर्यादा के परे पहुंचे पिंड को (देहको) कालपिंड कहते हैं । ये बारह ज्योतिर्लिंग निम्नानुसार हैं ।

ज्योतिर्लिंगस्थान
१. सोमनाथप्रभासपट्टण, वेरावल के पास, सौराष्ट्र, गुजरात.
२. मल्लिकार्जुनश्रीशैल, आंध्रप्रदेश
३. महाकालउज्जैन, मध्यप्रदेश
४. ओंकार / अमलेश्वरओंकार, मांधाता, मध्यप्रदेश
५. केदारनाथउत्तराखंड
६. भीमाशंकरडाकिनी क्षेत्र, तालुका खेड, जनपद पुणे, महाराष्ट्र.
७. विश्वेश्वरवाराणसी, उत्तरप्रदेश
८. त्र्यंबकेश्वरनासिक के पास, महाराष्ट्र
९. वैद्यनाथ (वैजनाथ)(टिप्पणी १)परळी, जनपद बीड, महाराष्ट्र
१०. नागेश (नागनाथ)(टिप्पणी २)दारुकावन, द्वारका, गुजरात
११. रामेश्वरसेतुबंध, कन्याकुमारी के पास, तमिलनाडु.
१२. घृष्णेश्वर (घृष्णेश)वेरूळ, जनपद औरंगाबाद, महाराष्ट्र.

टिप्पणी १ – पाठभेद : वैद्यनाथधाम, झारखंड.
टिप्पणी २ – पाठभेद १ : अलमोडा, उत्तर प्रदेश
पाठभेद २ : औंढा, जनपद हिंगोली, महाराष्ट्र.

ये बारह ज्योतिर्लिंग प्रतीकात्मक रूप में शरीर है; काठमंडू का पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंगों का शीश है ।

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शिव के 12 ज्योतिर्लिंग का महत्व, कहानी और कहां-कहां स्थित हैं | Name, Place and List of Shiva 12 Jyotirlingas in hindi

नमस्कार पाठकों भारत एक ऐसा देश है जहां अध्यात्म में आस्था रखने वाले लोग बसते हैं। भारत मंदिरों का देश है और यहां कई ऐसे विशिष्ठ धाम है जहां पर भक्तों का तांता हमेशा लगा रहता है। आज हम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग के महत्व व विशेषता के बारें में विस्तार से बताएंगे ।

कहां जाता है जो भी व्यक्ति अपने पूरें जीवन में एक बार शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर लेता है तो वह सभी दोषों से मुक्त होकर मृत्यु पश्चात मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। सौभाग्यशाली लोग ही अपने जीवन में शिव के 12 ज्योतिलिंगों के दर्शन कर पाते हैं। (Shiva 12 Jyotirlinga in hindi)

आज के लेख में हम आपको बताएंगे कि 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम क्या-क्या है। शिव के 12 ज्योतिर्लिंग कहां-कहां स्थित हैं? तथा उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें।

ज्योतिर्लिंग का अर्थ क्या है? ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति?

ज्योतिर्लिंग दो शब्दों से मिलकर बनता है ज्योति़लिंग। शिव प्रकाशमान ज्योति के रूप में प्रकट हुये थे। धार्मिक मान्यताओं व ग्रथों के अनुसार शिव साक्षात रुप में एक दिव्य ज्योति के रूप में साक्षात प्रकट हुये थे। यह धरती के 12 अलग-अलग स्थानों पर अपने विभिन्न रूपों में साक्षात विराजमान हुये थे।

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ज्योतिर्लिंग अर्थ प्रकाश स्तंभ होता है। ऐसा कहा जाता है कि एक बार भगवान ब्रह्मा को और भगवान विष्णु के बीच में यह बहस हुई कि कौन सर्वाेच्च देवता है। तभी भगवान शिव प्रकाश स्तंभ के रूप में प्रकट हुए और प्रत्येक से इस प्रकाश स्तम्भ का अंत खोजने को कहा। भगवान विष्णु ऊपर की ओर भगवान ब्रह्मा नीचे की ओर इस ज्योतिर्लिंग का अंत खोजने के लिए चले गए। लेकिन फिर भी उन्हें इसका अंत नहीं मिला। उसके बाद में भगवान शिव ने प्रकाश स्तंभ को पृथ्वी पर गिरा दिया और आज उसे ही ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है।

शिव के 12 ज्योतिर्लिंग का महत्व, कहानी, और कहां-कहां स्थित हैं ज्योतिर्लिंग

1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग-गुजरात

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के गुजरात में स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के सौराष्ट्र नामक क्षेत्र में स्थित है। यह पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यहां पर माना जाता है कि देवताओं ने पवित्र कुंड बनाया था जिसे सोमनाथ कुंड माना जाता है। इस कुंड में स्नान करने से व्यक्ति के मनुष्य के या किसी भी जीव के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। और वह मृत्यु-जन्म के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है।

मित्रों सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का उल्लेख ऋग्वेद, शिव पुराण, स्कंद पुराण, श्रीमद भगवत गीता में भी मिलता है। इससे हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि यह मंदिर कितना पुराना हो सकता है।

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ऐसा माना जाता है कि सबसे पहले इस मंदिर को भगवान ने चंद्रदेव ने बनाया था भगवान चन्द्र देव को सोमदेव के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार इस मंदिर के सुनहरे का भाग का निर्माण चंद्रदेव ने किया और चांदी का भाग सूर्यदेव ने बनाया। चंदन के भाग को भगवान श्री कृष्ण ने बनवाया और पत्थर की संरचना को भीमदेव नामक राजा ने बनवाया। इस मंदिर पर महमूद गजनबी ने तकरीबन 16 बार आक्रमण किया और 16 बार इसे खंडित किया। और इसे फिर से 16 बार वापस खड़ा किया गया।

2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग-आध्रप्रदेश

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आध्रप्रदेश के कृष्णा नदी के तट पर स्थित है और यह ज्योतिर्लिंग श्रीशैल नामक पर्वत पर स्थित है।

कई राजाओं ने मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का रखरखाव करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। लेकिन इतिहास की किताबों में जो पहला नाम मिलता है वह सतवाहन साम्राज्य का है।

छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रखरखाव में अपना योगदान दिया था। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की एक खास बात यह भी है कि इसी के पास में एक शक्तिपीठ भी है भारत में कुल 51 शक्तिपीठ है।

3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग-उज्जैन, मध्यप्रदेश

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित है यह 12 ज्योतिर्लिंगों में एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिण मुखी है और यहां प्रतिदिन 5000 से ज्यादा भक्त पूजा के लिए आते हैं। त्योहारों पर तो यहां 20,000 से 30,000 भक्तों का तांता लग जाता है।

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महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है जो अपने आप प्रकट हुआ था महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव की पूजा जलती हुई चिता की राख व भस्म से महाकाल शिव की पूजा की जाती है।

4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग-मांधाता, मध्यप्रदेश

यह ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में शिवपुरी द्वीप स्थित है। इसे मंधाता पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। इस ज्योतिर्लिंग के पास में नर्मदा नदी बहती है। यह इंदौर शहर से लगभग 75 किमी की दूरी पर स्थित है। ओंकारेश्वर मंदिर का नाम ओंकारेश्वर इसलिए पड़ा है क्योंकि यह ज्योतिर्लिंग के चारों और पहाड़ है और पहाड़ के चारों और जो नदी बहती है वह ओम का आकार बनाती है।

इसलिए इसे ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। ओंकारेश्वर का अर्थ होता है ओम के आकार का ज्योतिर्लिंग।

5. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग-उत्तराखंड

ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में स्थित है। मित्रों केदारनाथ ज्योतिर्लिंग पूरे विश्व में सबसे अधिक लोकप्रिय ज्योतिर्लिंग है और यहां पर विश्व भर से लाखों लोग भगवान केदारनाथ के दर्शन के लिए आते हैं और इन लोगों में केवल हिंदू ही नहीं क्रिश्चियन और यहूदी धर्म के लोग भी आते हैं।

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग समुद्र तल से तकरीबन 3584 मीटर ऊंचा है। अर्थात इतनी ऊंचाई पर स्थित है।

भगवान केदारनाथ का मंदिर बद्रीनाथ के स्थान पर स्थित है।

ऐसा भी माना जाता है कि केदारनाथ धाम की खोज पांडवों ने कही थी वह अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए केदारनाथ धाम पहुंचे थे। और केदारनाथ मंदिर का निर्माण पांडवों ने ही सबसे पहले करवाया था। इसके बाद इसका पुनर्निर्माण आदिशंकराचार्य जी ने करवाया था।

6. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग-पुणे, महाराष्ट्र

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में स्थित है। महाराष्ट्र के सम्हाद्री नामक पर्वत पर स्थित है।

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के बारे में आपको एक कथा बताते हैं जो रामायण काल से जुड़ी हुई है। जब भगवान राम ने कुंभकरण का वध कर दिया था तब कुंभकरण की कर्कटी नामक पत्नी के पुत्र भीम को कर्कटी ने देवताओं से दूर रखने का निश्चय किया।

जब भीम को पता चला कि देवताओं ने उसके पिता का वध कर दिया तो उसने बदला लेने के लिए ब्रह्मा जी की तपस्या करी और महान बलशाली होने का वरदान मांगा। इसी कारण उन्होंने कामरूपेक्ष्प नामक राजा को बंदी बनाकर काल कोठरी में डाल दिया। क्योंकि वह शिव जी के भक्त थे।

भीम ने कहा कि तुम मेरी पूजा करो लेकिन कामरूपेक्ष्प ने एसा करने से मना कर दिया और भीम ने कामरूपेक्ष्प को मारने की कोशिश करी। तभी भगवान शिव ने वहां प्रकट होकर भीम का वध कर दिया तभी देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना करी कि वे वही अपने ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास करें। तब से इस ज्योतिर्लिंग का नाम भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग पड़ गया।

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7. भगवान काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग – वाराणसी, उ.प्र.

भगवान विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित है। वाराणसी पूरे भारत की धार्मिक राजधानी मानी जाती है।

विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग को काशी विश्वनाथ की कहा जाता है। और यह मान्यता है कि जब पृथ्वी बनी थी तब सूर्य की पहली किरण काशी पर ही गिरी थी। इस मंदिर को कई बार तोड़ने की कोशिश करी गई औरंगजेब ने किस मंदिर को तोड़ने की कोशिश करी। और इसके के पास एक मंदिर था जिसे भी तोड़ने की कोशिश करी गई और वहां पर एक मस्जिद का निर्माण कराया गया और वही मस्जिद आज ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जानी जाता है।

8. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग-नासिक, महाराष्ट्र

मित्रों त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में स्थित है। और यह महाराष्ट्र के भी नासिक जिले में स्थित है। त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग ब्रम्हगिरी नामक एक पर्वत पर स्थित है। जहां से गोदावरी नदी शुरू होती है।

त्रिंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, त्रंबकेश्वर नाम इसलिए भी जाना चाहता है क्योंकि यहां पर तीन छोटे-छोटे लिंग हैं जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और शिव के प्रतीक भी माना जाता है। यह मंदिर महाराष्ट्र के नासिक शहर से दूर गौतमी नदी के तट पर है।

9. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग-देवघर, झारखंड

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखंड राज्य के संथाल परगना के पास स्थित है।

यदि हम शिवपुराण की माने तो इसे भगवान शिव के इस पावन धाम को चिता भूमि कहा जाता है।

भगवान वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को रावण की भक्ति का प्रतीक भी माना जाता है और यह ज्योतिर्लिंग अपने भक्तों की कामनाओं को पूरा करने और उन्हें रोग मुक्त बनाने के लिए प्रसिद्ध है।

10. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग-द्वारका, गुजरात

मित्रों नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात में स्थित है। और गुजरात के भी यह बड़ौदा क्षेत्र के गोमती द्वारका के निकट स्थित है। मित्रों यह द्वारकापुरी से तकरीबन 17 किमी दूर है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव की 80 फीट ऊंची एक मूर्ति है। और इसमें इसके निर्माण में दारूका नाम और उसके पति दारुक की कथा सुनाई जाती है।

इसके लिए एक की संस्कृत में श्लोक भी कहा गया है कि- “वैद्यनाथन चिताभूमें नागेशं दारुकावने”

11. रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग-कन्याकुमारी, तमिलनाडु

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रमनाथम में स्थित है। रामसेतु भी वही स्थित है।

मित्रों रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग रामायण के समय काल तक का पुराना माना जाता है। यह भी माना जाता है कि आज के समय जो रामेश्वरम मंदिर में 24 पानी के कुए हैं वह खुद भगवान श्रीराम ने अपने तीरों से बनाए थे ताकि वे अपने वानर सेना की प्यास बुझा सके।

रामेश्वरम मंदिर के पास ही भगवान राम और विभीषण की पहली बार मुलाकात हुई थी।

और ऐसा भी माना जाता है कि रावण को मारने के लिए जो ब्रह्म हत्या का पाप भगवान राम को लगा था उसके दोषी से मुक्त होने के लिए भगवान राम ने यही भगवान शिव की आराधना करी थी।

12. घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग-औरंगाबाद, महाराष्ट्र

घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के संभाजी नगर के पास में दौलताबाद के स्थान पर स्थित है। इससे भगवान शिवालय भी कहा जाता है क्योंकि यह अंतिम और बाहरवा ज्योतिर्लिंग है।

यह ज्योतिर्लिंग घुश्मा के मृत पुत्र को जीवित करने के लिए भगवान शिव के समर्पण में बनाया गया है। और तभी से यह घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

विशेषताएं

रुद्राक्ष मंत्रसिद्धि हेतु आवश्यक गुण एवं शक्ति अनुसार उचित ज्योतिर्लिंग का चयन कर उसका अभिषेक करें, उदा. महांकाल तामसी शक्ति से युक्त हैं (सभी ज्योतिर्लिंगों में एकमात्र दक्षिणामुखी ज्योतिर्लिंग उज्जैन के महांकाल को ही माना जाता है । तांत्रिक उपासना में इसका महत्त्व अधिक है; परंतु इसकी अरघा का स्रोत पूर्व दिशा की ओर है ।), नागनाथ हरिहरस्वरूप हैं तथा सत्त्व एवं तमोगुणप्रधान हैं, त्र्यंबकेश्वर त्रिगुणात्मक (अवधूत) हैं तथा सोमनाथ रोगमुक्ति हेतु उचित हैं ।

ज्योतिर्लिंग का अर्थ

अ. व्यापक ब्रह्मात्मलिंग अथवा व्यापक प्रकाश

आ. तैत्तिरीय उपनिषद् में ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार एवं पंचमहाभूत, इन बारह तत्त्वों को बारह ज्योतिर्लिंग माना गया है ।

इ. शिवलिंग के बारह खंड

ई. अरघा यज्ञवेदी का दर्शक है एवं लिंग यज्ञप्रतीक ज्योति का अर्थात यज्ञशिखा का द्योतक है ।

उ. द्वादश आदित्यों के प्रतीक

ऊ. प्रसुप्त ज्वालामुखियों के उद्भेदस्थान

दक्षिण दिशा के स्वामी यमराज शिवजी के आधिपत्य में हैं, इसलिए दक्षिण दिशा शिवजी की ही हुई । अरघा का स्रोत दक्षिण की ओर हो, तो वह ज्योतिर्लिंग दक्षिणाभिमुखी होता है एवं ऐसी पिंडी अधिक शक्तिशाली होती है । (पाठभेद – उज्जैन स्थित ज्योतिर्लिंग का श्रृंगार करते समय शिवलिंग पर शिवजी का मुख दक्षिण दिशा की ओर दिखाया जाता है ।) स्रोत यदि उत्तर की ओर हो, तो पिंडी अल्प शक्तिशाली होती है । अधिकांश मंदिर दक्षिणाभिमुखी नहीं होते ।

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ये मंदिर काला जादू के लिए जाना जाता है https://anjujadon.com/ye-mandit-kala-jadu-ke-liye-jana-jata-hai/ https://anjujadon.com/ye-mandit-kala-jadu-ke-liye-jana-jata-hai/#respond Sun, 25 Dec 2022 16:36:29 +0000 https://anjujadon.com/?p=1568 <p>The post ये मंदिर काला जादू के लिए जाना जाता है first appeared on Anju Jadon News & Blogs.</p>

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ये मंदिर काला जादू के लिए जाना जाता है

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Kamakhya Temple: कामाख्या मंदिर में दिए जाने वाले प्रसाद का महत्व और मंदिर का रहस्य भी https://anjujadon.com/kamakhya-temple-history-in-hindi-kamakhya-temple-history-in-hindi/ https://anjujadon.com/kamakhya-temple-history-in-hindi-kamakhya-temple-history-in-hindi/#respond Mon, 19 Dec 2022 17:39:10 +0000 https://anjujadon.com/?p=1533 भारत में शक्ति पीठों में से एक, असम में नीलाचल पहाड़ी की चोटी पर स्थित कामाख्या मंदिर कई दिलचस्प फैक्ट्स से जुड़ा हुआ है। देश के अन्य मंदिरों के अलावा, कामाख्या मंदिर (Kamakhya Temple) में देवी कामाख्या की कोई मूर्ति नहीं है, साथ ही मंद‍िर में योनि की पूजा की जाती है।चलिए ऐसे ही कुछ […]

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भारत में शक्ति पीठों में से एक, असम में नीलाचल पहाड़ी की चोटी पर स्थित कामाख्या मंदिर कई दिलचस्प फैक्ट्स से जुड़ा हुआ है। देश के अन्य मंदिरों के अलावा, कामाख्या मंदिर (Kamakhya Temple) में देवी कामाख्या की कोई मूर्ति नहीं है, साथ ही मंद‍िर में योनि की पूजा की जाती है।चलिए ऐसे ही कुछ दिलचस्प फैक्ट्स के बारे में आपको इस लेख में बताते हैं।

Kamakhya Temple Mystery: हमारे देश में लाखों मंदिर हैं, लेकिन कुछ मंदिर ऐसे हैं जो विचित्र हैं. इन्हीं में से एक कामाख्या मंदिर. असम का ये मंदिर काला जादू के लिए जाना जाता है. मान्यता है कि इस सिद्धपीठ पर हर किसी की मनोकामना पूरी होती है. यहां तंत्र विद्या जानने वालों का तांता लगा रहता है. कामाख्या देवी के 51 शक्तिपीठों में शामिल है. आपको बता दें कि माता सती के अंग अलग-अलग जगहों पर गिरे थे. जहां पर भी माता का कोई अंग या फिर कोई आभूषण गिरा उस जगह को शक्तिपीठ कहा जाता है. कामाख्या में सती माता की महामुद्रा (योनि) है. यहां पर सिद्धी प्राप्त करने के लिए कई लोग जाते हैं.

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यह सभी 108 शक्ति पीठों में प्रमुख 18 महा शक्ति पीठों में से एक है –

कामाख्या मंदिर सभी 108 शक्ति पीठों में से एक प्राचीन मंदिरों में से एक है, जिसकी उत्पत्ति 8वीं शताब्दी में हुई थी। इसे 16वीं शताब्दी में कूचबिहार के राजा नारा नारायण ने फिर से बनवाया था। इसके बाद से इसे कई बार फिर से पुनर्निमित किया गया है।

‘मासिक धर्म’ देवी –

कामाख्या मंदिर में देवी की योनि की मूर्ति की पूजा की जाती है। इसे गुफा के एक कोने में रखा गया है। इसके अलावा मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है। हालांकि, मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को मंदिर के अंदर जाने की अनुमति नहीं है।

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मंदिर के पीछे की कहानी –

कामाख्या मंदिर कामरूप के क्षेत्र में स्थित है, जहाँ मां की योनि गिरी थी। ये मंदिर काफी रहस्यों से घिरा हुआ है। जून (आषाढ़) के महीने में कामाख्या के पास से गुजरने वाली ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है। ऐसा कहा जाता है कि नदी लाल होने का कारण है कि इस दौरान मां को मासिक धर्म हो रहे हैं। यह भी कहा जाता है कि मंदिर के चार गर्भगृहों में ‘गरवर्गीहा’ सती के गर्भ का घर है।

शक्तिवाद के पीछे की कहानी –

जब भगवान राजा दक्ष अपनी बेटी के साथ भगवान शिव का विवाह रचाने के इच्छुक नहीं थे और उन्होंने इस वजह से उन्हें यज्ञ में निमंत्रण भी नहीं दिया था। सती को जब इस बात का पता चला तो उनसे शिव का अपमान सहा नहीं गया। गुस्से में सती आग में कूद गई, जब शिव को इस बारे में पता चला, तो वो दुखी होकर सती को गोद में लेकर तांडव करने लगे। देवताओं को जब इस बात की चिंता हुई तब उन्होंने भगवान विष्णु से इसको लेकर मदद मांगी। उन्होंने फिर अपने सुदर्शन चक्र से सती की लाश के 108 टुकड़े कर दिए और शरीर के वो अंग देश के अलग-अलग हिस्सों में जा गिरे।

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वार्षिक प्रजनन उत्सव –

कामाख्या मंदिर एक वार्षिक प्रजनन उत्सव का आयोजन करता है जिसे अंबुबासी पूजा के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान देवी का मासिक धर्म होता है। तीन दिनों तक बंद रहने के बाद, मंदिर चौथे दिन उत्सव के साथ फिर से खुल जाता है। इस पर्व के दौरान कहा जाता है कि ब्रह्मपुत्र नदी भी लाल हो जाती है। इस दौरान शक्ति प्राप्त करने के लिए साधू अलग-अलग गुफाओं में बैठक साधना करते हैं। ये जानकार आपको शायद हैरानी हो, लेकिन लोग यहां लोग मां के मासिक धर्म के खून से लिपटी हुई रूई को प्राप्त करने के लिए घंटों पर लाइन में खड़े रहते हैं।

तांत्रिक विद्या मां की साधना के बाद हासिल होती है. कामाख्या में कई ऐसे साधु हैं जिन्हें दसों महाविद्याएं प्राप्त हैं. मान्यताओं के मुताबिक जादू-टोना से पीड़ित व्यक्तियों का उतारा इस मंदिर में किया जाता है. अगर कोई काला जादू या बुरी आत्माओं के साये से परेशान है तो इस दिक्कत से कामाख्या मां के दरबार में छुटकारा मिल सकता है. मंदिर में नकारात्मकता दूर करने के लिए तावीज भी मिलता है. 

ये मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे स्थित है. मान्यता है कि जून के महीने में माता को मासिक चक्र होता है. इस दौरान तीन दिनों तक ब्रह्मपुत्र नदी का पानी लाल रंग का हो जाता है. इन तीन दिनों तक मंदिर का गर्भ गृह बंद रखा जाता है. माता को इससे पहले सफेद रंग का लंबा कपड़ा चढ़ाया जाता है, कपाट खोलने पर कपड़े का रंग बदल जाता है. इसे अंबुचाची  वस्त्र कहते हैं, बाद में इसे भक्तों में बांटा जाता है. कामाख्या में इन दिनों में अंबूचाची मेला लगता है जो विश्व प्रसिद्ध है. 

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कालिका पुराण: 4 प्राथमिक पीठों में से एक

कालिका पुराण के अनुसार, कामाख्या मंदिर चार प्राथमिक शक्तिपीठों में से एक है। जगन्नाथ मंदिर, पुरी, ओडिशा में विमला मंदिर; ब्रह्मपुर, ओडिशा के पास तारा तारिणी; और कोलकाता, पश्चिम बंगाल में दक्षिणा कालिका अन्य तीन हैं।

वशीकरण पूजा

यहां कामाख्या माता के साथ काली माता के दस रूपों की पूजा की जाती है. कामाख्या मंदिर में वशीकरण के लिए भी पूजा और हवन किया जाता है. अगर घर के लोगों के बीच वैमनस्य है तो लोग वशीकरण पूजा करवाते हैं. 

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Khatu Shaym Temple History: खाटू श्याम मंदिर का इतिहास https://anjujadon.com/khatu-shaym-temple-history-rajasthan-khatu-shyam-temple/ https://anjujadon.com/khatu-shaym-temple-history-rajasthan-khatu-shyam-temple/#comments Wed, 07 Dec 2022 12:22:57 +0000 https://anjujadon.com/?p=1526 Khatu Shyam Temple: खाटू श्याम को कई नामों से बुलाया जाता है, शीश दानी और कलियुग का भगवान, लोगों का सहारा है खाटू श्याम, जानिए मंदिर का इतिहास और क्या है इसकी महिमा राजस्थान के सीकर स्थित (Sikar Rajasthan) खाटू श्याम (Khatu Shaym Temple) के मंदिर में हर साल लोगों की काफी भीड़ होती है. कई […]

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Khatu Shyam Temple: खाटू श्याम को कई नामों से बुलाया जाता है, शीश दानी और कलियुग का भगवान, लोगों का सहारा है खाटू श्याम, जानिए मंदिर का इतिहास और क्या है इसकी महिमा

राजस्थान के सीकर स्थित (Sikar Rajasthan) खाटू श्याम (Khatu Shaym Temple) के मंदिर में हर साल लोगों की काफी भीड़ होती है. कई बार तो श्रद्धालु खाटू श्याम के दर्शन करने के लिए सुबह से शाम तक लाइन में लगते हैं. खाटू श्याम का मंदिर (Khatu Shyam Mandir) आज का नहीं है बल्कि हजारों साल पुराना है. राजस्थान में यह सबसे प्रसिद्ध मंदिर है, यहां दूर दूर से लोग दर्शन करने और निशान चढ़ाने के लिए आते हैं. श्री खाटू श्याम जी का मंदिर भगवान कृष्ण के भक्तों के लिए प्रमुख पूजा स्थल माना जाता है. खाटू श्याम के कई नाम हैं और उनकी महिमा भी बहुत है. आईए जानते हैं इस मंदिर का इतिहास और क्या है खाटू श्याम की महिमा. 

भगवान खाटू श्याम को वर्तमान समय (कलियुग) का देवता माना जाता है. खाटू श्याम मंदिर उत्तर भारत के सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है. मंदिर के मूल संस्थापकों के वंशज ऐतिहासिक रूप से मंदिर की सेवा करते रहे हैं.ऐसा माना जाता है कि श्री खाटू श्याम मंदिर में हर साल लगभग एक लाख श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.

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खाटू श्याम जी मंदिर का इतिहास क्या है (History of Khatu Shyam Temple Rajesthan) 

खाटू श्याम राजस्थान के खाटू शहर में भगवान कृष्ण (Lord Krishna) का एक सदियों पुराना मंदिर है. खाटू श्याम मंदिर भगवान कृष्ण की मूर्ति के लिए जाना जाता है जो उनके सिर के रूप में है, श्याम की मूर्ति का रंग भी सांवरा है और उसका आधा सिर कटा हुआ है. राजस्थान के यह राज्य के सबसे प्रमुख पूजा स्थलों में से एक है. इस बेहद खूबसूरत मंदिर की उपस्थिति के कारण ही शहर की लोकप्रियता बढ़ी है.

खाटू श्याम मंदिर की कहानी महाभारत के सदियों पुराने हिंदू महाकाव्य से आती है. पांडवों में से एक, भीम के परपोते वीर बर्बरीक को भगवान कृष्ण का बहुत बड़ा भक्त माना जाता है. उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम के प्रतीक के रूप में अपना सिर बलिदान कर दिया था. इस महान बलिदान से प्रभावित होकर भगवान ने वीर बर्बरीक को आशीर्वाद दिया. वरदान यह था कि कलियुग में श्याम के रूप में उनकी पूजा की जाएगी. बर्बरीक के इस महान बलिदान ने उन्हें “शीश के दानी” का नाम दिया था. श्री खाटू श्याम में श्याम के रूप में पूजे जाने वाले वीर बर्बरीक अपने भक्तों में ‘हारे का सहारा’ के नाम से भी प्रसिद्ध हैं.भगवान कृष्ण के भक्तों का मानना ​​है कि भगवान हमेशा शुद्ध हृदय वाले लोगों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं.

माना जाता है कि मंदिर का निर्माण खाटू श्याम के शासक राजा रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर ने करवाया था. रूप सिंह का एक सपना था जिसमें उन्हें खाटू के एक कुंड से श्याम शीश निकालकर मंदिर बनाने के लिए कहा गया था. उसी कुंड को बाद में ‘श्यामा कुंड’ के नाम से जाना जाने लगा. 

एक मान्यता यह भी है की करीब 1000 साल पहले एकादशी के दिन बाबा का शीश श्यामकुंड में मिला था. यहां पर कुएं के पास एक पीपल का बड़ा पेड़ था. यहां पर आकर गायों का दूध स्वत ही झरने लगता था. गायों के दूध देने से गांव वाले हैरत में थे. गांव वालों ने जब उस जगह खुदाई की तो बाबा श्याम का शीश मिला था. शीश को चौहान वंश की रानी नर्मदा कंवर को सौंप दिया गया, बाद में विक्रम संवत 1084 में इस शीश की स्थापना मंदिर में की गई उस दिन देवउठनी एकादशी थी. भक्त इस पवित्र तालाब में इस विश्वास के साथ पवित्र स्नान करते हैं कि यह स्नान उन्हें सभी रोगों और संक्रमणों से छुटकारा दिलाएगा.

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मंदिर की वर्तमान वास्तुकला दीवान अभयसिंह द्वारा 1720 के आसपास पुनर्निर्मित की गई है. भगवान बर्बरीक, जिन्हें वर्तमान समय (कलियुग) का देवता माना जाता है. यहां भगवान कृष्ण के रूप में उनकी पूजा की जाती है. हिंदू धर्म में जरूरतमंदों के सहायक के रूप में पूजनीय भगवान खाटू श्याम यहां निवास करते हैं और अपने भक्तों की सभी प्रार्थनाओं का उत्तर देने के लिए प्रसिद्ध हैं. 

एक मान्यता यह भी है की करीब 1000 साल पहले एकादशी के दिन बाबा का शीश श्यामकुंड में मिला था. यहां पर कुएं के पास एक पीपल का बड़ा पेड़ था. यहां पर आकर गायों का दूध स्वत ही झरने लगता था. गायों के दूध देने से गांव वाले हैरत में थे. गांव वालों ने जब उस जगह खुदाई की तो बाबा श्याम का शीश मिला था. शीश को चौहान वंश की रानी नर्मदा कंवर को सौंप दिया गया, बाद में विक्रम संवत 1084 में इस शीश की स्थापना मंदिर में की गई उस दिन देवउठनी एकादशी थी.भक्त इस पवित्र तालाब में इस विश्वास के साथ पवित्र स्नान करते हैं कि यह स्नान उन्हें सभी रोगों और संक्रमणों से छुटकारा दिलाएगा.

मंदिर की वर्तमान वास्तुकला दीवान अभयसिंह द्वारा 1720 के आसपास पुनर्निर्मित की गई है. भगवान बर्बरीक,जिन्हें वर्तमान समय (कलियुग) का देवता माना जाता है. यहां भगवान कृष्ण के रूप में उनकी पूजा की जाती है. हिंदू धर्म में जरूरतमंदों के सहायक के रूप में पूजनीय भगवान खाटू श्याम यहां निवास करते हैं और अपने भक्तों की सभी प्रार्थनाओं का उत्तर देने के लिए प्रसिद्ध हैं. 

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खाटू श्याम की कथा

लाक्षागृह की घटना में प्राण बचाकर वन-वन भटकते पांडवों की मुलाकात हिडिंबा नाम की राक्षसी से हुआ। यह भीम को पति रूप में प्राप्त करना चाहती थी। माता कुंती की आज्ञा से भीम और हिडिंबा का विवाह हुआ जिससे घटोत्कच का जन्म हुआ। घटोत्कच का पुत्र हुआ बर्बरीक जो अपने पिता से भी शक्तिशाली और मायाबी था।

– बर्बरीक देवी का उपासक था। देवी के वरदान से उसे तीन दिव्य बाण प्राप्त हुए थे जो अपने लक्ष्य को भेदकर वापस लौट आते थे। इनकी वजह से बर्बरीक अजेय हो गया था।

-महाभारत के युद्ध के दौरान बर्बरीक युद्ध देखने के इरादे से कुरुक्षेत्र आ रहा था। श्रीकृष्ण जानते थे कि अगर बर्बरीक युद्ध में शामिल हुआ तो परिणाम पाण्डवों के विरुद्ध होगा। बर्बरीक को रोकने के लिए श्री कृष्ण गरीब ब्राह्मण बनकर बर्बरीक के सामने आए। अनजान बनते हुए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछ कि तुम कौन हो और कुरुक्षेत्र क्यों जा रहे हो। जवाब में बर्बरीक ने बताया कि वह एक दानी योद्धा है जो अपने एक बाण से ही महाभारत युद्ध का निर्णय कर सकता है। श्री कृष्ण ने उसकी परीक्षी लेनी चाही तो उसने एक बाण चलाया जिससे पीपल के पेड़ के सारे पत्तों में छेद हो गया। एक पत्ता श्रीकृष्ण के पैर के नीचे था इसलिए बाण पैर के ऊपर ठहर गया।

– श्रीकृष्ण बर्बरीक की क्षमता से हैरान थे और किसी भी तरह से उसे युद्ध में भाग लेने से रोकना चाहते थे। इसके लिए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि तुम तो बड़े पराक्रमी हो मुझ गरीब को कुछ दान नहीं दोगे। बर्बरीक ने जब दान मांगने के लिए कहा तो श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका शीश मांग लिया। बर्बरीक समझ गया कि यह ब्राह्मण नहीं कोई और है और वास्तविक परिचय देने के लिए कहा। श्रीकृष्ण ने अपना वास्तविक परिचय दिया तो बर्बरीक ने खुशी-खुशी शीश दान देना स्वीकर कर लिया।

-रात भर भजन-पूजन कर फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को स्नान पूजा करके, बर्बरीक ने अपने हाथ से अपना शीश श्री कृष्ण को दान कर दिया। शीश दान से पहले बर्बरिक ने श्रीकृष्ण से युद्ध देखने की इच्छा जताई थी इसलिए श्री कृष्ण ने बर्बरीक के कटे शीश को युद्ध अवलोकन के लिए, एक ऊंचे स्थान पर स्थापित कर दिया।

-युद्ध में विजय श्री प्राप्त होने पर पांडव विजय का श्रेय लेने हेतु वाद-विवाद कर रहे थे। तब श्रीकृष्ण ने कहा की इसका निर्णय बर्बरीक का शीश कर सकता है। बर्बरीक के शीश ने बताया कि युद्ध में श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र चल रहा था जिससे कटे हुए वृक्ष की तरह योद्धा रणभूमि में गिर रहे थे। द्रौपदी महाकाली के रूप में रक्त पान कर रही थीं।

-श्री कृष्ण ने प्रसन्न होकर बर्बरीक के उस कटे सिर को वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजित होगे तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होगी।

स्वप्न दर्शनोंपरांत बाबा श्याम, खाटू धाम में स्थित श्याम कुण्ड से प्रकट हुए थे। श्री कृष्ण विराट शालिग्राम रूप में सम्वत् 1777 से खाटू श्याम जी के मंदिर में स्थित होकर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण कर कर रहे हैं।

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हर साल लगता है खाटूश्याम मेला
प्रत्येक वर्ष होली के दौरान खाटू श्यामजी का मेला लगता है। इस मेले में देश-विदेश से भक्तजन बाबा खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर में भक्तों की गहरी आस्था है। बाबा श्याम, हारे का सहारा, लखदातार, खाटूश्याम जी, मोर्विनंदन, खाटू का नरेश और शीश का दानी इन सभी नामों से खाटू श्याम को उनके भक्त पुकारते हैं। खाटूश्याम जी मेले का आकर्षण यहां होने वाली मानव सेवा भी है। बड़े से बड़े घराने के लोग आम आदमी की तरह यहां आकर श्रद्धालुओं की सेवा करते हैं। कहा जाता है ऐसा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

भक्तों की इस मंदिर में इतनी आस्था है कि वह अपने सुखों का श्रेय उन्हीं को देते हैं। भक्त बताते हैं कि बाबा खाटू श्याम सभी की मुरादें पूरी करते हैं। खाटूधाम में आस लगाने वालों की झोली बाबा खाली नहीं रखते हैं।

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खाटू श्‍याम कैसे जाएं (Route to reach Khatu Shyam)

खाटूश्याम मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ. इनको खाटू नरेश भी कहते हैं. अगर आप राजस्थान जा रहे हैं तो आपको इनके दर्शन करने चाहिए. लोग दूर दूर से निशान लेकर पैदल आते हैं.

खाटू श्‍याम जाने का राजस्थान से रूट

यहां ट्रेन, बस दोनों ही जाती है 
अगर आप दिल्ली से आ रहे हैं तो पहले झूंझनू आएं और फिर वहां से सीकर 2 घंटे में बस या गाड़ी से जा सकते हैं. 
दिल्ली से चुरू या फिर सालासर के लिए बस चलती है, यह रोडवेज बसें भी आपको राजस्थान के बिकानेर या फिर खाटू श्याम ले जाती है 

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कैला देवी का इतिहास मंदिर व मेला

कैला देवी का इतिहास मंदिर व मेला | Kaila Devi Story Temple In Hindi: करौली के यदुवंश (यादव राजवंश) की कुलदेवी कैला देवी पूर्वी राजस्थान की मुख्य आराध्य देवी है. ऐसी मान्यता है. कि द्वापर युग में जब कंस ने वासुदेव-देवकी को मथुरा के कारागृह में बंद किया तो उस समय कंस ने वासुदेव की आठवी संतान (कन्या) का वध करना चाहा. वास्तव में वह कन्या योगमाया का अवतार थी, अतः अंतर्ध्यान हो गई. वही कन्यारुपी देवी करौली में कालिसिल नदी के किनारे त्रिकुट पर्वत पर कैला देवी के रूप में विराजमान है.

kela devi mandir

चैत्रामास में शक्तिपूजा का विशेष महत्व रहा है। राजस्थान के करौली जिला मुख्यालय से दक्षिण दिशा की ओर 24 किलोमीटर की दूरी पर पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य त्रिकूट पर्वत पर विराजमान कैला मैया का दरबार चैत्रामास में लघुकुम्भ नजर आता है। उत्तरी-पूर्वी राजस्थान के चम्बल नदी के बीहडों के नजदीक कैला ग्राम में स्थित मां के दरबार में बारह महीने श्रद्धालु दर्शनार्थ आते रहते हैं लेकिन चैत्रा मास में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले वार्षिक मेले में तो जन सैलाब-सा उमड पडता है।

उत्तर भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना है। मंदिर के बारे में कई मान्यताएं हैं इतिहासकारों के अनुसार वर्तमान में जो कैला ग्राम है वह करौली के यदुवंशी राजाओं के आधिपत्य में आने से पहले गागरोन के खींची राजपूतों के शासन में था। खींची राजा मुकन्ददास ने सन् 1116 में मंदिर की सेवा, सुरक्षा का दायित्व राजकोष पर लेकर नियमित भोग-प्रसाद और ज्योत की व्यवस्था करवा दी थी। राजा रघुदास ने लाल पत्थर से माता का मंदिर बनवाया। स्थानीय करौली रियासत द्वारा उसके बाद नियमित रूप से मंदिर प्रबन्धन का कार्य किया जाता रहा। मां कैलादेवी की मुख्य प्रतिमा के साथ मां चामुण्डा की प्रतिमा भी विराजमान है।

      चैत्रामास में लगभग एक पखवाडे तक चलने वाले इस लक्खी मेले में राजस्थान के सभी जिलो  के अलावा उत्तर प्रदेश,  मध्य प्रदेश,  दिल्ली,  हरियाणा,  गुजरात व दक्षिण भारतीय प्रदेशों तक के दर्शनार्थी आकर मां के दरबार में मनौतियां मांगते है। चैत्रामास के दौरान करौली जिले के प्रत्येक मार्ग पर चलने वाले राहगीर के कदम कैला ग्राम की तरफ जा रहे होते है। सत्राह दिवसीय इस मेले का मुख्य आकर्षण प्रथम पांच दिन एवं अंतिम चार दिनों में देखने को मिलता है रोजाना लाखों की संख्या में दूरदराज के पदयात्री लम्बे-लम्बे ध्वज लेकर लांगुरिया गीत गाते हुए आते है। मन्दिर के समीप स्थित कालीसिल नदी में स्नान का भी विशेष महत्व है। मेले में करौली जिला प्रशासन द्वारा मंदिर ट्रस्ट के सहयोग से तथा आमजन द्वारा भी सभी स्थानों पर यात्रियों के लिए विशेष इंतजामात किए जाते है। अनुमानतः प्रतिवर्ष लगभग 30 से 40 लाख यात्री मां के दरबार में अपनी हाजिरी लगाते है।

राजस्थान के करौली जिले में कैलादेवी का मुख्य मंदिर है. इस मन्दिर की चौकी चांदी की व इसकें सोने की छतरी के नीचे दो मूर्तियाँ स्थापित है. इन दोनों मूर्तियों में पहली कैला माता की व दूसरी चामुंडा देवी की प्रतिमा है. आठ भुजाओं वाली इस देवी के मुख्य मंदिर को हिन्दू धर्म की मुख्य शक्तिपीठों में गिना जाता है. राजस्थान यूपी सहित उत्तर भारत के मंदिर में कैलादेवी करौली का विशेष महत्व है. इस प्राचीन हिन्दू मंदिर का निर्माण 1600 ईस्वी में शासक भोमपाल ने करवाया था.

परम्पराओं का निर्वहन

मेले के दौरान महिला यात्री सुहाग के प्रतीक के रूप में हरे रंग की चुडियां एवं सिंन्दूर की खरीदरी करना नहीं भूलती है वहीं नव दम्पत्तियों द्वारा एक साथ दर्शन करना, बच्चों का मुंडन संस्कार की परम्परा भी यहां देखने को मिलती है। मंदिर परिसर में ढोल-नगाडों की धुन पर अनायास ही पुरूष दर्शनार्थी लांगुरिया गीत गाने लगते है तो महिला दर्शकों के कदम थिरके बिना नहीं रह सकते।  

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चरणबद्द आते है यात्री

कैलादेवी चैत्रामास के लक्खी मेले में प्रदेशों की मान्यता अनुसार यात्राी चरणबद्व रूप से आते है। चैत्रा कृष्ण बारह से पडवा तक मेले में पांच दिन तक पद यात्रियों का रेलम-पेल रहता है इस चरण में वाहनों से यात्री कम आते है एवं अधिकतर उत्तरप्रदेश के यात्री होते है। द्वितीय चरण में नवरात्रा स्थापना से तृतीया तक दिल्ली, हरियाणा के यात्रियों का जमावडा रहता है। इस दौरान गाडियों से यात्रियों के आने की शुरूआत हो जाती है। तीसरे चरण में चतुर्थी से छटवीं तक मध्यप्रदेश एवं धौलपुर क्षेत्रा के यात्री आते है। इस दौरान ट्रक्टर ट्रोलियों का उपयोग अधिक देखने को मिलता है।

चौथा चरण सप्तमी से नवमीं तक होता है इसमें गुजरात, मुम्बई व दक्षिण भारतीय राज्यों के यात्री अधिक आते है। अन्तिम चरण में राजस्थान भर के यात्राी एवं स्थानीय लोग लांगुरिया गाते हुए आते है। यह दसमीं से पूर्णिमा तक चलता है।

कैसे पहुंचे कैलादेवी करौली मंदिर (How to reach Kaila Devi Karauli Temple)

करौली जिले का यह कस्बा पूर्ण रूप से सड़क परिवहन से जुड़ा हुआ है. जयपुर आगरा नेशनल हाइवे पर स्थित महुआ कस्बे से यहाँ की दूरी तक़रीबन 95 किलोमीटर है. महुआ से कैलादेवी के लिए राज्य राजमार्ग 22 सीधा जाता है. राजस्थान रोडवेज अथवा निजी टैक्सी वाहन के जरिये इस मन्दिर तक पंहुचा जा सकता है.

यदि रेलमार्ग की बात करे तो वेस्टर्न रेलवे जोन के दिल्ली मुंबई रेलवे लाइन पर सवाईमाधोपुर की हिंडोन शहर से यह 55 किलोमीटर तथा गंगापुर शहर से 48 किलोमीटर की दूरी पर है.

दूर के राज्यों अथवा विदेशी जातरू कैलादेवी आने के लिए हवाई रूठ को चुन सकते है. यहाँ नजदीकी हवाई अड्डा जयपुर है. कैलादेवी की जयपुर से दूरी तक़रीबन 200 किमी है. जिन्हें बस के द्वारा पूरा किया जा सकता है.

कैलादेवी मेला

कैलादेवी मन्दिर करौली में स्थित है. यहाँ पर मार्च अप्रैल महीने में विशाल मेला भरता है. जहाँ लाखों की तादाद में देशी विदेशी यात्री माँ के दर्शन करने के लिए आते है. कैलादेवी के मेले में लिंगुरिया गीत गाये जाते है.

त्रिकूट मंदिर की मनोरम पहाड़ियों की तलहटी में स्थित देवी का मुख्य मंदिर संगमरमर के पत्थर पर बनाया गया है. सिंह की सवारी में माता की मुख्य प्रतिमा लगी हुई है. भक्तगण अपनी मन्नते पूरी करवाने के लिए माथा टेकते है.

करौली से २४ किमी तथा कैला गाँव से 2 किमी की दूरी पर कालीसिल नदी के तट पर माँ का धाम हैं. कैला देवी करौली के यादव वंश की कुलदेवी मानी जाती हैं. भक्त लिगुरिया गीत गाकर माँ को प्रसन्न करते हैं.

चैत्र माह के नवरात्र में देवी दुर्गा के शक्ति रूपों की पूजा करने की परम्परा हैं. राजस्थान के करौली का कैला मैया का मेला छोटे कुंभ  की तरह बड़ा धार्मिक संगम हैं,  त्रिकुट पहाड़ी पर चंबल नदी के बीहड़ के कैला  माँ के धाम में वर्ष के १२ महीनों भक्तो का ताँता लगा रहता हैं. मगर चैत्र माह का मेले में देशभर से लाखों श्रद्धालु पहुचते हैं.

मां कैलादेवी की मुख्य प्रतिमा के साथ मां चामुण्डा की प्रतिमा कैलादेवी मन्दिर में स्थापित हैं. हजारों वर्ष पुराना इस टेम्पल का इतिहास हैं. बताते है कि स्थानीय शासक रघुदास जी ने लाल पत्थरों से इस मन्दिर का निर्माण करवाया था. बाद के रणथम्भौर के खीची राजपूत शासकों के क्षेत्र में आता था.

खींची राजा मुकन्ददास ने सन् 1116 में मंदिर की सेवा, सुरक्षा का दायित्व राज कोष पर लेकर नियमित भोग-प्रसाद और नित्य पूजा अर्चना का प्रबंध किया था इसके बाद यह मन्दिर करौली के यादव राज वंश के अधिकार में आ गया.

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मां के अवतरण की गाथा

      धर्म ग्रंथों के अनुसार सती के अंग जहां-जहां गिरे वहीं एक शक्तिपीठ का उदगम हुआ। उन्हीं शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ कैलादेवी है। कहा जाता है कि बाबा केदागिरी ने तपस्या के बाद माता के श्रीमुख की स्थापना इस शक्तिपीठ के रूप में की। ऐतिहासिक साक्ष्यों एवं किवदन्तियों के अनुसार प्राचीनकाल में कालीसिन्ध नदी के तट पर बाबा केदागिरी तपस्या किए करते थे यहां के सघन जंगल में स्थित गिरी -कन्दराओं में एक दानव निवास करता था जिसके कारण संयासी एवं आमजन परेशान थे। बाबा ने इन दैत्यों से क्षेत्रा को मुक्त कराने के लिए हिमलाज पर्वत पर आकर घोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर माता प्रकट हो गई। बाबा ने देवी मां से दैत्यों से अभय पाने के लिए वर मांगा। बाबा केदारगिरी त्रिकूट पर्वत पर आकर रहने लगे। कुछ समय पश्चात देवी मां कैला ग्राम में प्रकट हुई और उस दानव का कालीसिन्ध नदी के तट पर वध किया। जहां एक बडे पाषाण पर आज भी दानव के पैरों के चिन्ह देखने को मिलते है। इस स्थान का नाम आज भी दानवदह के नाम से जाना जाता है।

      एक अन्य किवदन्ती के अनुसार त्रिकूट पर्वत पर बहूरा नामक चरवाहा अपने पशुओं को चराने ले जाता था एक दिन उसने देखा की उसकी बकरियां एक स्थान विशेष पर दुग्ध सृवित कर रही है इस चमत्कार ने उसे आश्चर्य मेें डाल दिया। उसने इस स्थल की खुदाई की तो देवी मां की प्रतिमा निकली। चरवाहे ने भक्तिपूर्वक पूजन कर ज्योति जगाई धीरे-धीरे प्रतिमा की ख्याति क्षेत्रा में फैल गई। आज भी बहूरा भगत का मंदिर कैलादेवी मुख्य मंदिर प्रांगण में स्थित है।

कैला देवी माता का मेला कब और कहाँ भरता हैं

हिन्दू कलैंडर के अनुसार चैत्र माह के नवरात्र में कैला मैया का मेला 15 दिनों तक चलता है जो अंग्रेजी माह के अनुसार अप्रैल के महीने में आयोजित होता हैं यहाँ राजस्थान के अलावा यूपी दिल्ली, हरियाणा पंजाब तथा गुजरात से बड़ी मात्रा में सैलानी अपनी मनोकामनाएं लेकर माँ के दरबार में हाजरी लगाते हैं. मेले के पहले पांच दिनों तथा आखिरी के चार दिनों में विशेष रौनक देखने को मिलती हैं.

नवरात्र के दौरान करौली के सभी सड़क मार्गों पर हाथ में ध्वजा लिए लिगुरियां गीत गाते भक्तों के हुजूम हर कोई दिखाई देते हैं. करौली जिला प्रशासन द्वारा मंदिर ट्रस्ट भी कैला देवी मन्दिर के प्रबंध की सम्पूर्ण इंतजाम करते हैं, इस दिन कालीसिल नदी में स्नान करना पुण्यदायक माना जाता हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 35 से 45 तक श्रद्धालु हर वर्ष कैला देवी मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं.

कैला मैया मेला परम्परा इतिहास व कहानी

इस मेले में महिला श्रद्धालु हरे रंग की चूड़ियाँ तथा सिंदूर अवश्य खरीदती हैं हिन्दू मान्यता के अनुसार इसे सुहाग का प्रतीक माना गया हैं. यादव समुदाय में नव दम्पति जोड़े में दर्शन करने के लिए इस मन्दिर आते हैं तथा बालकों का मुंडन भी करवाया जाता हैं. मेले की मुख्य तिथियों पर ढोल नगाड़ों की गूंज तथा लागुरियां गीत के स्वर भक्तों को मंत्र मुग्ध कर देते हैं. मेले की मान्यता के अनुसार यात्राी चरणबद्व रूप से आते है। चैत्रा कृष्ण बारह से पडवा तक मेले में पांच दिन तक पद यात्रियों का हुजूम उमड़ा रहता हैं. यह मेला यह दसमीं से पूर्णिमा तक चलता है.

कैला देवी मां की पूजा विधि

कैला देवी मेले के दौरान 2 लाख से अधिक तीर्थयात्री इस स्थान पर आते हैं। कैला देवी मेले के वक्त यहां भक्तों के लिए 24 घंटे भंडार और उनके आराम करने की व्यवस्था की जाती है। किन्तु कुछ भक्त ऐसे भी होते हैं जो बिना कुछ खाय-पिए, बिना आराम किए इस कठोर यात्रा को पूरा करते है।

मीना समुदाय के लोग आदिवासियों के साथ मिलकर नाचते-गाते इस यात्रा को पूरा करते हैं। भक्त नकद, नारियल, काजल (कोहल), टिककी, मिठाई और चूड़ियां देवी को प्रदान करते हैं यह सब समान भक्त अपने साथ लेकर आते हैं।

मंदिर में सुबह-शाम आरती भजन किया जाता है। कहा जाता है कि माता को प्रसन्न करने का एक ही तरीका है लांगूरिया भजन को गाना। भक्त माता की भक्ति में लीन होकर नाचते-गाते हुए उनका आशीर्वाद ग्रहण करते हैं।

कथा एवं मान्यताएँ व इतिहास 

  • पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है, कि कंस द्वारा देवकी व वासुदेव को जब कैद किया गया था. उसी काराग्रह में इस कन्या ने जन्म लिया था. एक ऋषि के आग्रह पर वह त्रिकुट पर्वत पर आई और तभी से उनका यहाँ से नाता जुड़ गया.
  • चैत्र माह में उत्तर भारत के बड़े मेलों में से एक कैलादेवी के मेले में कड़ाके की ठंड के बिच भक्त मुरादे लेकर आता है. लोगों का विश्वास है, कि जो भी यहाँ आता है वो खाली हाथ नही लौटता है.
  • सूनी गोद भरने की आस हो या सुहाग की चिरायु होने की कामना, कैलादेवी पूरी करती है. इसी कारण यहाँ हर रोज सैकड़ों दम्पति अपने नवजात का झडूला संस्कार करने के लिए लाते है.  हर सुहागिन स्त्री माँ के दरबार से जाते वक्त अमर चूड़ियाँ अपने साथ ले जाना नही भूलती है.
  • कहा जाता है, कि प्राचीन काल में यह त्रिकुट का इलाका घने वन से घिरा हुआ था, यहाँ एक नरकासुर नाम का राक्षस रहा करता था. उसके अत्याचार से जनता बेहद त्रस्त थी. इस अत्याचारी से छुटकारा पाने के लिए उन्होंने माँ दुर्गा की उपासना की. तथा कैलादेवी के रूप में माँ दुर्गा ने अवतार लेकर उस अत्याचारी राक्षस का अंत किया.
  • इस मन्दिर के बारे में यह रोचक बात है, कि यहाँ करौली व सवाईमाधोपुर के बड़े खूंखार डाकू माँ की पूजा करने आते है. प्रशासन उनके साथ हरसंभव सख्ती बरतने की व्यवस्था करने के उपरांत भी वे उन्हें नही रोक पाते है. डकैत लोगों भी माँ के आंगन में आकर कुछ समय के लिए ही सही सच्चे इंसान बन जाते है. तथा किसी श्रद्धालु के साथ किसी किस्म का दुर्व्यवहार नही करते है.
  • भगवान् राम के गुरु महर्षि विशिष्ट के वंशज कहे जाने वाले कटारे हिन्दू आबादी यहाँ बहुल है. जिनमें गुप्ता, माथुर, वैश्य मुख्य है. ये नार्थ इंडिया व पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों में रहते है. ये कैलादेवी को अपनी कुलदेवी के रूप में स्वीकार करते है.

क्यों है कैला देवी मंदिर की इतनी महिमा

राजस्थान के करौली जिले में स्थित कैला देवी मंदिर से भक्तों की अपार श्रद्धा जुड़ी हुई है जिसका कारण है यहां पर उनकी मनोकामना पूरी होना।

यह कैला देवी मंदिर का ही चमत्कार है कि यहां पर जो भी भक्त आकर के सच्चे मन से अपनी मनोकामना को माता कैला देवी से पूरी होने की अरदास लगाता है, उसकी मनोकामना माता कैला देवी अवश्य पूरी करती हैं और यही वजह है कि लोगों के बीच इस मंदिर को लेकर के अपार श्रद्धा है और यही इस मंदिर की इतनी महिमा का मुख्य कारण भी है।

यह कैला देवी मंदिर का ही चमत्कार है कि, राजस्थान का करौली जिला वर्तमान के समय में पूरी दुनिया भर में फेमस हो गया है और हर साल यहां पर भक्तों की भारी भीड़ माता कैला देवी मंदिर का दर्शन करने के लिए आती है जिसके कारण स्थानीय लोगों को रोजगार भी प्राप्त हो रहा है और भक्तों की मनोकामनाएं भी पूरी हो रही है।

माता कैला देवी मंदिर की स्थापत्य कला

ऐतिहासिक किताबों के अनुसार देखा जाए तो मध्यकालीन के आसपास माता कैला देवी के इस मंदिर का निर्माण होना माना गया है। ऐसा माना गया है कि राजा भोमपाल जोकि त्रिकूट पर्वत पर रहते थे, उन्होंने ही 1600 ईसवी में माता कैला देवी के इस मंदिर का निर्माण करवाया था। 

इस मंदिर की शैली नागर है। जब आप इस मंदिर में प्रवेश करते हैं तो आपको मंदिर के गर्भ गृह में जाने पर माता कैला देवी की एक अद्भुत और प्रकाशवान मूर्ति दिखाई देती है।

इस मंदिर में निर्माण करने के लिए लाल पत्थर का इस्तेमाल किया गया है जो कि राजस्थान के करौली जिले में काफी भारी मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए यह मंदिर हल्के लाल रंग का दिखाई देता है और रात में यह मंदिर लाइट की फुलझड़ीयो के कारण बहुत ही मनोरम प्रतीत होता है।

कैला देवी का लक्खी का मेला

बता दें कि जिस प्रकार हर बड़े मंदिर पर साल में एक बार मेले का आयोजन होता है उसी प्रकार कैला देवी मंदिर में भी मेले का आयोजन होता है जिसे लक्खी का मेला कहा जाता है। यह मेला चैत्र मास की द्वादशी से चालू होता है और उसके बाद लगातार 15 दिनों तक इस मेले का आयोजन चलता रहता है।

इस मेले में हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों के लोग भी आते हैं जो यहां पर आने के बाद सबसे पहले मंदिर के पास में ही स्थित कालीसिल नदी में स्नान करते हैं और स्नान करने के बाद साफ स्वच्छ कपड़े पहन कर के माता कैला देवी के दर्शन करते हैं, उसके बाद मेले का आनंद उठाते हैं।

मेले में कई लोग अपनी विशेष मन्नत पूरी करवाने के लिए भी आते हैं। इसके अलावा कई लोग यहां पर आ कर के अपने बच्चों का मुंडन करवाते हैं और माता कैला देवी की पूजा करते हैं। इस मेले में राजस्थान की कई ऐतिहासिक चीजों की बिक्री अलग-अलग लोगों के द्वारा की जाती है।

कैला देवी मन्दिर में दर्शन का समय 

अगर कैला देवी मंदिर की इतनी महिमा सुनने के बाद आप यहां पर जाने का प्रोग्राम बना रहे हैं तो आपको यह पता कर लेना चाहिए कि कैला देवी माता के मंदिर में दर्शन का समय क्या है। बता दें कि पुजारी के द्वारा हर सुबह 4:00 बजे के आसपास इस मंदिर के द्वार को खोल दिया जाता है, ताकि भक्त लोग माता कैला देवी के दर्शन कर सकें।

यह मंदिर सुबह 4:00 बजे से लेकर के रात को 9:00 बजे तक खुला रहता है। हालांकि ऐसे श्रद्धालुओं जो दूर से इस जगह पर माता जी के दर्शन करने के लिए आते हैं उन्हें सुबह 4:00 बजे से लेकर के 6:00 बजे तक दर्शन कर लेना चाहिए ताकि वह अगर वापस अपने घर उसी दिन जाना चाहे तो जा सके।

दर्शन के बाद ठहरने की व्यवस्था 

दूर से आने वाले भक्तों के लिए यहां पर आपको मंदिर के आस-पास में ही ठहरने की व्यवस्था आज के समय में मिल जाएगी क्योंकि अब इस मंदिर को स्थानीय लोगों के द्वारा काफी ज्यादा डिवेलप किया जा रहा है। इसीलिए आपको यहां पर कई धर्मशाला और छोटे-मोटे होटल ठहरने के लिए मिल जाएंगे।

मंदिर में स्थापित माताजी की मूर्ति का दृश्य 

जब आप इस मंदिर में दर्शन करने के लिए जाएंगे तब आपको यहां पर माता की दो प्रकार की मूर्तियां दिखाई देंगी, क्योंकि इस मंदिर में इनकी दो मूर्तियां स्थापित की गई है। इसमें से जो माता कैला देवी की मूर्ति है उसका जो मुंह है वह थोड़ा सा तिरछा दिखाई देता है।

ऐसा कहा जाता है कि यह मूर्ति यहां पहले नहीं थी बल्कि यह मूर्ति पहले नगरकोट में स्थापित थी और वहां पर विदेशी हमलावरों के डर के कारण वहां के पुजारियों ने इस मूर्ति को वहां से उठाकर के यहां पर लाकर स्थापित कर दिया। इस मंदिर के अंदर आपको दूसरी मूर्ति माता चामुंडा देवी की मिलती है जिनकी पूजा हर रोज माता कैला देवी के साथ ही यहां पर की जाती है।

माता की एक मूर्ति का मुंह तिरछा होने का कारण

हमने आपको बताया कि यहां पर माता जी की दो मूर्तियां स्थापित हैं जिसमें से एक मूर्ति का मुंह तिरछा है जिसके पीछे ऐसी मान्यता है कि एक बार यहां पर माताजी का कोई परम भक्त उनका दर्शन करने के लिए आया था और वापस जाते समय उसने माताजी से यह वादा किया था कि वह फिर से बहुत जल्द ही उनके दर्शन करने के लिए आएगा।

परंतु किसी ना किसी कारण की वजह से उनका वह भक्त दोबारा माता जी के दर्शन करने नहीं आ सका और तब से ही माताजी उस भक्त के इंतजार में उस दिशा की ओर देख रही है जिस दिशा की ओर उनका भक्त गया था और इसी कारण माता जी की मूर्ति का मुंह आज भी टेढ़ा है जो इस बात को व्यक्त करता है कि माता जी आज भी अपने उस गए हुए भक्त का इंतजार कर रही हैं।

चमत्कारिक है कालीसिल नदी

माता कैला देवी के मंदिर के पास ही एक कालीसिल नदी मौजूद है जो अपने चमत्कारों के कारण पूरी दुनिया भर में विख्यात है। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त माता कैला देवी के दर्शन करने के लिए यहां पर आता है उसे सबसे पहले इस नदी में स्नान करके अपने आप को शुद्ध करना पड़ता है और उसके बाद ही वह माता कैला देवी के दर्शन अगर करता है तो उसका दर्शन संपूर्ण माना जाता है।

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Ganesh Chaturthi 2022: गणेश चतुर्थी पर इस साल बन रहा है खास संयोग, जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि https://anjujadon.com/ganesh-chaturthi-2022-ganesh-chaturthi-kab-hai-2022-me/ https://anjujadon.com/ganesh-chaturthi-2022-ganesh-chaturthi-kab-hai-2022-me/#respond Wed, 24 Aug 2022 14:22:15 +0000 https://anjujadon.com/?p=1354 Ganesh Chaturthi 2022, ganesh chaturthi 2022 date, ganesh chaturthi 2022 puja time, ganesh chaturthi 2022 shubh muhurat, ganesh chaturthi 2022 shukla paksha, ganesh chaturthi 2022 tithi, Ganesh Chaturthi kab hai, ganesh chaturthi kab hai 2022, ganesh chaturthi kab hai 2022 me, गणेश चतुर्थी 2022 तिथियां, गणेश चतुर्थी 2022 शुभ मुहूर्त, गणेश चतुर्थी कब है 2022 […]

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Ganesh Chaturthi 2022: इस साल गणेश चतुर्थी के पावन पर्व की शरुआत 31 अगस्त से होने जा रहा है। गणेश चतुर्थी के मौके पर इस साल पर विशेष संयोग बन रहा है। यह योग काफी शुभ माना जा रहा है। 

Ganesh Chaturthi 2022: 10 दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव की शुरुआत 31 अगस्त से होने जा रहा है। गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की जाएगी जबकि 10वें दिन अनंत चतुर्दशी के मौके पर 9 सितंबर को गणेश पूजन के बाद उनके प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। कई लोग एक दिन, तीन दिन, पांच दिन या सात दिनों के लिये भी गणपति जी को घर पर लाते हैं।

गणेश चतुर्थी बन रहा है खास संयोग

गणेश चतुर्थी के मौके पर इस साल पर विशेष संयोग बन रहा है। यह योग काफी शुभ माना जा रहा है। भगवान गणेश बुधवार के देवता हैं, ऐसे में गणेश चतुर्थी बुधवार के दिन पड़ रही है। इसके साथ ही इस साल गणेश चतुर्थी के मौके पर रवि योग है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक रवि योग सभी अशुभ योग के प्रभाव को नष्ट करने की क्षमता रखता है। इस दिन भगवान श्री गणेश की विधि विधान से पूजा व्रत रखने से हर मनोकामना पूरी होगी और हर कष्ट दूर होंगे।

गणेश चतुर्थी शुभ मुहूर्त

31 अगस्त को सुबह 11 बजकर 05 मिनट से दोपहर 01 बजकर 38 मिनट के बीच भगवान गणेश की पूजा का शुभ मुहूर्त है। इस दिन रवि योग सुबह 05 बजकर 58 मिनट से दोपहर 12 बजकर 12 मिनट तक रहेगा। इस दौरान शुभ कामों को करना अति उत्तम माना जाता है।

गणेश पूजन के लिए जरूरी सामग्री

पूजा के लिए चौकी, लाल कपड़ा, भगवान गणेश की प्रतिमा, जल का कलश, पंचामृत, रोली, अक्षत, कलावा, लाल कपड़ा, जनेऊ, गंगाजल, सुपारी, इलाइची, बतासा, नारियल, चांदी का वर्क, लौंग, पान, पंचमेवा, घी, कपूर, धूप, दीपक, पुष्प, भोग का समान आदि एकत्र कर लें।

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भगवान गणेश की प्रतिम स्थापना की विधि

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों ने निवृत्त होकर स्नान करे लें। गणपति का स्मरण करते हुए पूजा की पूरी तैयारी कर लें। इस दिन लाल रंग के वस्त्र धारण करें। एक कोरे कलश में जल भरकर उसमें सुपारी डालें और उसे कोरे कपड़े से बांधना चाहिए। इसके बाद सही दिशा में चौकी स्थापित करके उसमें लाल रंग का कपड़ा बिछा दें। स्थापना से पहले गणपति को पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद गंगाजल से स्नान कराकर चौकी में जयकारे लगाते हुए स्थापित करें। इसके साथ रिद्धि-सिद्धि के रूप में प्रतिमा के दोनों ओर एक-एक सुपारी भी रख दें।

भगवान गणेश की पूजा विधि

स्थापना के बाद गणपति को फूल की मदद से जल अर्पित करे। इसके बाद रोली, अक्षत और चांदी की वर्क लगाए। इसके बाद लाल रंग का पुष्प, जनेऊ, दूब, पान में सुपारी, लौंग, इलायची और कोई मिठाई रखकर अर्पित कर दें। नारियल और भोग में मोदक अर्पित करें। षोडशोपचार के साथ उनका पूजन करें। गणेश जी को दक्षिणा अर्पित कर उन्हें 21 लड्डूओं का भोग लगाएं। सभी सामग्री चढ़ाने के बाद धूप, दीप और अगरबत्‍ती से भगवान गणेश की आरती करें। इसके बाद इस मंत्र का जाप करें।

गणपति मंत्र का जाप (Ganesha Mantra)

गणपति स्थापित करने के बाद घर में पूरे विधि-विधान के साथ उनकी पूजा की जाती है इस दौरान ‘वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥’ या फिर ‘ऊं गं गणपतये नम:’ मंत्र का जाप जरूर करें।

(note : ये लेख आम धारणाओं पर आधार‍ित है। anjujadon.com इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है।)

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Ganesh Chaturthi Puja Vidhi गणेश चतुर्थी पूजन वि‍ध‍ि : इस टोटके से बप्पा नहीं छोड़ेंगे आपका घर https://anjujadon.com/ganesh-chaturthi-puja-vidhi/ https://anjujadon.com/ganesh-chaturthi-puja-vidhi/#respond Wed, 24 Aug 2022 13:59:40 +0000 https://anjujadon.com/?p=1351 शास्त्रानुसार देवी पार्वती ने अपने मैल से एक बालक को जन्म देकर उसे द्वारपाल बनाया। जब बालक द्वारपाल ने महेश्वर को पार्वती के कक्ष में जाने से रोका, तब क्रोधित महेश्वर ने त्रिशूल से बालक का सिर काट दिया। महेश्वर के निर्देश पर श्रीहरि उत्तर दिशा में मिले सर्वप्रथम जीव गज का सिर काटकर लाए। […]

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शास्त्रानुसार देवी पार्वती ने अपने मैल से एक बालक को जन्म देकर उसे द्वारपाल बनाया। जब बालक द्वारपाल ने महेश्वर को पार्वती के कक्ष में जाने से रोका, तब क्रोधित महेश्वर ने त्रिशूल से बालक का सिर काट दिया। महेश्वर के निर्देश पर श्रीहरि उत्तर दिशा में मिले सर्वप्रथम जीव गज का सिर काटकर लाए। महेश्वर ने गज मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित किया व त्रिदेवों सहित सर्व देवों ने गणेश को प्रथम पूज्य व विघ्न-विनाशक होने का वर दिया। शास्त्रों में गणेश चतुर्थी को कलंक चतुर्थी भी कहा गया है। गणेश पुराण के अनुसार, गणेश द्वारा चंद्रमा को श्राप दिया गया था। इसलिए इस दिन चंद्र दर्शन करना निषेध माना गया है। ऐसा करने पर व्यक्ति पर कलंक दोष लगता है। गणेश चतुर्थी के दिन लोग मध्यान के समय गणेश जी की मिट्टी की मूर्ति की स्थापना कर पूजन, व्रत व उपाय करते हैं, जिससे कलंक से मुक्ति मिलती है, संकटों का नाश होता है और ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है।

स्पेशल पूजन विधि: घर की उत्तर दिशा में पीला कपड़ा बिछाकर गणेश जी की मिट्टी की मूर्ति स्थापित कर षोडशोपचार पूजन करें। घी में हल्दी मिलाकर दीपक जलाएं, चंदन की धूप करें, पीत चंदन से तिलक करें, पीले कनेर के फूल चढ़ाएं, 4 केले चढ़ाएं, मोतीचूर के लड्डू का भोग लगाएं। रुद्राक्ष की माला से 108 बार यह विशेष मंत्र जपें। रात को चंद्रमा को पीतल के लोटे में जल, इत्र, हल्दी, चंदन, रोली मिलाकर बिना देखे अर्घ्य दें व भोग प्रसाद स्वरूप सभी में वितरित करें। 

स्पेशल मंत्र: ॐ गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्॥

स्पेशल टोटके: 
ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति के लिए: गणेश जी को 21 लड्डूओं का भोग लगाएं। उनमें से 16 लड्डू ब्राह्मणों में बांट दें।

संकटों का नाश करने के लिए: मौली में 21 दूर्वा बांधकर मुकुट बनाकर गणेश जी के सिर पर बांधें। 

कलंक से मुक्ति के लिए: आईने में अपनी शक्ल देखकर उसे गणपति मंदिर में चढ़ाएं।  

उपाय चमत्कार: 
गुड हेल्थ के लिए: गणपति पर चढ़े बेसन के लड्डू का सेवन करें। 
 
गुडलक के लिए: हल्दी हाथ में लेकर ‘ॐ सिद्धिविनायकाय नमः’ मंत्र का 21 बार जाप करें।

विवाद टालने के लिए: दही-शक्कर के घोल में अपनी छाया देखकर किसी कुत्ते को खिलाएं।

नुकसान से बचने के लिए: 12 दूर्वा पर हल्दी लगाकर गणपति पर चढ़ाएं।

प्रोफेशनल सक्सेस के लिए: गणपति पर चढ़ी साबुत हल्दी ऑफिस की डेस्क पर रखें।

एजुकेशन में सक्सेस के लिए: गणपति पर चढ़ा रेड-गोल्डन पेन इस्तेमाल करें।

बिज़नेस में सफलता के लिए: गणपति पर चढ़े साबुत धनिया के बीज तिजोरी में रखें।

पारिवारिक खुशहाली के लिए: संध्या के समय गणपति की पीत कर्पूर-चंदन जलाकर आरती करें।

लव लाइफ में सक्सेस के लिए: गणपति पर चढ़ी मौली अपनी बाईं कलाई पर बांधे।

मैरिड लाइफ में सक्सेस के लिए: दंपत्ति गणपति पर लाल-पीले फूलों का गुलदस्ता चढ़ाएं।

(note : ये लेख आम धारणाओं पर आधार‍ित है। anjujadon.com इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है।)

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Ganesh Chaturthi per manglik dosh ke upay: गणेश चतुर्थी पर करें मंगल दोष का निवारण, जानें 5 अद्भुत और लाभदायक उपाय https://anjujadon.com/ganesh-chaturthi-per-manglik-dosh-ke-upay-5/ https://anjujadon.com/ganesh-chaturthi-per-manglik-dosh-ke-upay-5/#respond Wed, 24 Aug 2022 13:51:23 +0000 https://anjujadon.com/?p=1348 Ganesh Chaturthi 2021 Mangal Dosh Remedy: गणेश चतुर्थी पर प्रथम आराध्य देवता श्री गणेश की पूजा का विधान है। इस दिन विशेष उपाय करने से कुंडली में मंगल दोष से मुक्ति मिलती है।  Ganesh Chaturthi per Mangal Dosh Upay: सनातन धर्म में श्री गणेश को परम पूज्य देवता माना गया है। मान्यताओं के अनुसार, भाद्रपद मास […]

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Ganesh Chaturthi 2021 Mangal Dosh Remedy: गणेश चतुर्थी पर प्रथम आराध्य देवता श्री गणेश की पूजा का विधान है। इस दिन विशेष उपाय करने से कुंडली में मंगल दोष से मुक्ति मिलती है। 

Ganesh Chaturthi per Mangal Dosh Upay: सनातन धर्म में श्री गणेश को परम पूज्य देवता माना गया है। मान्यताओं के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर श्री गणेश का जन्म हुआ था। इस दिन गणेश चतुर्थी के रुप में श्री गणेश का जन्म उत्सव मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, गणेश चतुर्थी पर श्री गणेश की पूजा करना भक्तों के लिए मंगलमय है। कहा जाता है कि गणेश चतुर्थी पर कुंडली में मंगल दोष से छुटकारा प्राप्त करने के लिए विशेष उपाय करने चाहिए। अगर किसी जातक की कुंडली में मंगल दोष या मांगलिक दोष मौजूद होता है तो जातक के शादी-विवाह में अड़चनें आती हैं। इसके साथ कर्ज का बोझ और जमीन संबंधित मुसीबतों का सामना भी जातक को करना पड़ता है। 

करें इन मंत्रों का जाप

अगर किसी जातक की कुंडली में मंगल दोष है तो उसे गणेश चतुर्थी पर ॐ भौमाय नम: और ॐ अं अंगारकाय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। इससे मंगल ग्रह शांत होगा और इस दोष से मुक्ति प्राप्त होगी।

हनुमान मंदिर में बाटें बूंदी का प्रसाद 

मंगल दोष से मुक्ति प्राप्त करने के लिए जातकों को हनुमान मंदिर में बूंदी का प्रसाद बांटना चाहिए। इसके साथ मंगल दोष से मुक्ति प्राप्त करने के लिए लोग हर एक मंगलवार को व्रत रखते हैं। 

गणेश स्तोत्र का करें पाठ

गणेश चतुर्थी पर गणेश स्तोत्र का पाठ करें और विधिवत तरीके से श्री गणेश की पूजा करें।

गणेश जी के साथ हनुमान जी की करें पूजा

अगर किसी जातक की कुंडली में मंगल दोष है तो उसे गणेश चतुर्थी पर श्री गणेश और भगवान हनुमान की पूजा और ध्यान करना चाहिए। 

हनुमान मंदिर में चढ़ाएं लाल सिंदूर

गणेश चतुर्थी पर हनुमान मंदिर में लाल सिंदूर चढ़ाएं। इसके साथ जरूरतमंद लोगों को लाल वस्त्र या लाल मसूर की दाल का दान करें।

(note : ये लेख आम धारणाओं पर आधार‍ित है। anjujadon.com इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है।)

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