हनुमानजी की पूजा बंदर के रूप में ही क्यों की जाती है?
हनुमानजी को कलियुग में प्रत्यक्ष देव माना गया हैं। जो थोड़े से पूजन-अर्चन से अपने भक्त पर प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्त की सभी प्रकार के दु:ख, कष्ट, संकटो का नाश कर उसकी रक्षा करते हैं। कहते हैं हनुमानजी के पूजन से व्यक्ति में भक्ति, धर्म, गुण, शुद्ध विचार, मर्यादा, बल , बुद्धि, साहस आदि गुणों का भी विकास हो जाता है।
शास्त्रों के अनुसार हनुमानजी के प्रति द्दढ आस्था और अटूट विश्वास के साथ पूर्ण भक्ति एवं समर्पण की भावना से हनुमानजी के विभिन्न स्वरूप पूजन-अर्चन कर व्यक्ति अपनी समस्याओं से मुक्त होकर जीवन में सभी प्रकार के सुख प्राप्त कर सकता हैं। हनुमानजी ही मात्र ऐसे देवता है जिनकी पूजा बंदर या वानर रूप में की जाती है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि उनकी पूजा इस रूप में क्यों की जाती है।
दरअसल इस रहस्य को समझने के लिए हमें वानर शब्द के अर्थ को समझना पड़ेगा। वानर यानि वह प्राणी जो वन में रहता हो, जो वन में उत्पन्न आहार से ही अपने उदर की पूर्ति करता हो, जो गुफाओं में रहता हो, जो वन में रहने वाले अन्य प्राणी की ही तरह आचरण करता हो, जिसका स्वभाव वन्य जीवों के जैसा हो आदि ऐसे ही सभी गुण वाले प्राणी को वानर कहा जाना चाहिए। हमारे कई प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख है कि बाली, सुग्रीव, हनुमान सहित सभी वानर, वानर बताए गए हैं। परंतु हनुमान के महान व्यक्तित्व को देखते हुए उन्हें बंदर मान लेना समझ से परे हैं। कुछ विद्वानों का मत यह भी है कि वानर समुदाय या जाति या आदिवासी समूह के आराध्य देव बंदर रहे हो जिससे उन्हें भी वानर ही समझा जाने लगा जाने लगा जैसे नाग की पूजा करने वाले समुदाय को नागलोकवासी कहा जाता है।
परंतु जिस तरह नागलोक के रहने वाले प्राणियों को सर्प की भांति नहीं समझा जाता उसी तरह चमत्कारी और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हनुमान को वानर कैसे समझा जाएं? भगवान हनुमान शिव यानी रुद्र के अवतार हैं, उन्हें सामान्य वानर मान लेना ठीक नहीं है। वे मनुष्य जाति के लिए आदर्श हैं। मनुष्य में छिपी प्रतिभा और संभावनाओं के साक्षात प्रतिनिधि है।
नाग पंचमी पर नागों की पूजा क्यों जाती है?
हमारी सं स्कृति में हर साल नागपूजा की जाती है जिसे आम भाषा में नाग-पंचमी कहा जाता है। भगवान शिव भी सर्पों की माला गले में धारण करके मानो नाग देवता के प्रति आदर करने का उपदेश देते हैं।जैन धर्म, दर्शन तथा साहित्य में भी नाग को विशिष्ट स्थान दिया गया है। तेईसवें तीर्थंकर पाश्र्वनाथ के गर्भकाल में ही मां वामादेवी ने समीप में सरकते नाग को देखा जो दैवी दिव्यता का प्रतीक था। मान्यता है कि श्रावण मास के शुक्लपक्ष की पंचमी नागों को आनंद देने वाली तिथि है, इसलिए इसे नागपंचमी कहते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मातृ-शाप से नागलोक जलने लगा, तब नागों की दाह-पीड़ा श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन ही शांत हुई थी। इस कारण नागपंचमी पर्व विख्यात हो गया। प्राचीन समय में जनमेजय के द्वारा नागों को नष्ट करने के लिए किए जा रहे यज्ञ से जब नाग-जाति के समाप्त हो जाने का संकट उत्पन्न हो गया, तब श्रावण-शुक्ल-पंचमी के दिन ही तपस्वी जरत्कारु के पुत्र आस्तीक ने उनकी रक्षा की थी। यह भी एक कारण है श्रावण शुक्ला पंचमी के नागपंचमी कहे जाने का।
कहीं-कहीं पर सोने, चांदी अथवा लकड़ी की कलम द्वारा पांच फन वाले पांच सर्पो को बनाने की प्रथा भी है। सर्पो के पूजन में दूध, पंचामृत या खीर चढ़ाई जाती है।सही मायने में नागपंचमी का त्योहार हमें नागों के संरक्षण की प्रेरणा देता है। पर्यावरण की रक्षा और वनसंपदा के संवर्धन में हर जीव-जंतु की अपनी भूमिका तथा योगदान है, फिर सर्प तो लोक आस्था में भी बसे हुए है।
पूजा में क्यों और कैसे कपड़े पहनने चाहिए?
पूजा के समय अनेक मान्यताओं का पालन किया जाता है। हिन्दू परंपरा के अनुसार पूजा में पुरूषों के लिए धोती और महिलाओं के लिए पीले रंग की साड़ी को श्रेष्ठ माना गया है। यह भी कहा जाता है कि पूजा के वस्त्रों को अलग रखना चाहिए।
सामान्यत: यह बात सभी जानते हैं कि पूजा में काले कपड़े नहीं पहनना चाहिए। यदि पीले,लाल या केसरिया कपड़े पहने जाएं तो उसे बहुत शुभ माना जाता है। परंतु ऐसी मान्यता क्यों है,और इसकी क्या वजह है?दरअसल अगर ज्योतिष के दृष्टिकोण से देखा जाए तो पीले रंग को गुरु का रंग माना जाता है।
ज्योतिष के अनुसार गुरु ग्रह आध्यात्मिक और धर्म का कारक ग्रह है। ऐसा माना जाता है कि पूजा में पीले,लाल रंग के कपड़े पहनने से मन स्थिर रहता है और मन में अच्छे विचार आते हैं।साथ ही पीले,लाल व केसरिया रंग को अग्रि का प्रतीक माना जाता है।
अग्रि को हमारे धर्म ग्रंथों में बहुत पवित्र माना गया है। इसलिए ऐसी मान्यता है कि पीला रंग पहनने से मन में पवित्र विचार आते हैं। काले रंग को देखकर मन में नकारात्मक भावनाएं आती हैं। इसके विपरीत पीले रंग को देखकर मन में सकारात्मक भाव आते हैं। इसलिए पूजा में पीले,लाल व केसरिया रंग के कपड़े पहनना चाहिए।