कांवड़ का मूल शब्द ”कांवर” है जिसका सीधा अर्थ कंधे से है। शिव भक्त अपने कंधे पर पवित्र जल का कलश लेकर पैदल यात्रा करते हुए ईष्ट शिवलिंगों तक पहुंचते हैं। धार्मिक मान्यताओं के लिए पूरे विश्व में अलग पहचान रखने वाले भारतवर्ष में कांवड़ यात्रा के दौरान भोले के भक्तों में अद्भुत आस्था, उत्साह और अगाध भक्ति के दर्शन होते हैं । कांवडिय़ों के सैलाब में रंग-बिरंगी कांवड़े देखते ही बनती हैं।
आस्था का पर्व है श्रावण
कांवड़ यात्रा निकालने के पीछे एक तथ्य यह भी है कि भगवान आशुतोष देवी गंगा को ज्येष्ठ दशहरा को इस पृथ्वी पर लेकर आए थे। गंगा उनकी जटाओं में विराजमान हुईं। इसलिए भगवान शंकर को गंगा अत्यंत प्रिय हैं । गंगाजल के अभिषेक से वह अत्यंत प्रसन्न होते हैं । इसी के साथ दुग्ध, बेलपत्र और धतूरा अर्पित करने से भगवान आशुतोष भक्त पर प्रसन्न होते हैं और उस पर कृपा करते हुए मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं । श्रावण मास भगवान शिव की साधना का सर्वश्रेष्ठ समय है इसीलिए श्रद्धालु श्रावण मास में सोमवार के व्रत रखते हैं और भगवान भोलेशंकर की आराधना करते हुए उनके प्रिय पदार्थ उन्हें अर्पित करते हैं। भारत में श्रावण मास में शिवभक्ति का विराट रूप और आस्था का अनंत प्रवाह कांवड़ यात्रा के रूप में दृष्टिगोचर होता है।
कांवड़ यात्रा: इन बातों का रखें ध्यान
हमारे देश में प्राचीन काल से कांवड़ यात्राएं निकाली जा रही है। कुछ लोग कांवड़ यात्रा के सिर्फ धार्मिक पक्ष को ही जानते हैं जबकि कांवड़ यात्रा का मनोवैज्ञानिक पक्ष भी है।कांवड़ यात्रा वास्तव में एक संकल्प होती है, जो श्रद्धालु द्वारा लिया जाता है। कांवड़ यात्रा के दौरान यात्रियों द्वारा नियमों का पालन सख्ती से किया जाता है। कांवड़ यात्रियों के लिए किसी भी प्रकार का नशा वर्जित रहता है। इस दौरान तामसी भोजन यानी मांस, मदिरा आदि का सेवन भी नहीं किया जाता।
बिना स्नान किए कांवड़ यात्री कांवड़ को नहीं छूते। तेल, साबुन, कंघी करने व अन्य श्रृंगार सामग्री का उपयोग भी कावड़ यात्रा के दौरान नहीं किया जाता। कावड़ यात्रियों के लिए चारपाई पर बैठना एवं किसी भी वाहन पर चढऩा भी निषेध है। चमड़े से बनी वस्तु का स्पर्श एवं रास्ते में किसी वृक्ष या पौधे के नीचे कांवर रखने की भी मनाही है।
कांवड़ यात्रा में बोल बम एवं जय शिव-शंकर घोष का उच्चारण करना तथा कांवड़ को सिर के ऊपर से लेने तथा जहां कांवड़ रखी हो उसके आगे बगैर कांवड़ के नहीं जाने के नियम पालनीय होती है। इस तरह कठिन नियमों का पालन कर कांवड़ यात्री अपनी यात्रा पूर्ण करते हैं। इन नियमों का पालन करने से मन में संकल्प शक्ति का जन्म होता है।